देखते ही देखते दिन रात बदल जाते है
पल में लोग अपनी बात बदल जाते है
यूँ बदल गई आब-ओ-हवा मेरे शहर की
घर देख कर यहाँ अब ताल्लुकात बदल जाते हैं
न कर गुरुर बन्दे मेयार-ए-ख़ुद पर
कौन जाने कब किसके हालत बदल जाते हैं
रह गई है मौहब्बत की इतनी ही हकीक़त
रोज आशिको के अब जज्बात बदल जाते हैं
होती है आरजू-ए-मुकतला यहाँ सभी को
तकदीरे कभी तो कभी ख्वाहिशात बदल जाते है
क्या करें जहाँ में ऐतबार अब किसी का
जब दोस्त ही अपनी औकात बदल जाते हैं
मेयार = स्तर
मुकतला = ज्यादा
Comment
सैनी जी प्रणाम.......
सुंदर अतिसुंदर गजल ......"सपरिवार सहित आपको शुभ दीपावली"
फूल सिंह
Respected Nadir Khan sir ji ...........bahut bahut shukriya houshlaafzai ke liye.....
Respected Kushwaha sir ji thanks a lot for ur appreciation .........
बहुत बढ़ियां कोशिश है
क्या करें जहाँ में ऐतबार अब किसी का
जब दोस्त ही अपनी औकात बदल जाते हैं
बहुत खूब.
Thanks a lot seema mam, aapne rachna ko pasand kiya aur apna kimti smay diya , bahut
bahut dhanyvad mam...............
shukriya sube singh ji...............
आदरणीय गणेश जी "बागी" sir ji बहुत बहुत धन्यवाद अपना कीमती समय देने के लिए
शुक्रिया वीनस केसरी जी
घर देख कर यहाँ अब ताल्लुकात बदल जाते हैं....बहुत खूब सोनम जी
सुन्दर रचना ...बधाई
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