मौत भी अब तो बहाने बनाने लगी है दोस्तों
देखकर उनको ये भी नखरे दिखाने लगी है दोस्तों
हार जाना ही था शायद हिम्मत को मेरी
किस्मत भी मुझको चिढाने लगी है दोस्तों
क्या थी जिन्दगी और क्या हो गई है
रौशनी भी अब डराने लगी है दोस्तों
खो गये मेरे ख्वाब इस शहर में न जाने कहाँ
हकीक़त ही बस अब भाने लगी है दोस्तों
हो गई दोस्ती मेरी गमो से कुछ यूँ
खुशियाँ अब मुझको रुलाने लगी है दोस्तों
कहो तुम ही अब अंजाम-ए-जिन्दगी क्या हो
ख्वाहिशे तो अब बहलाने लगी है दोस्तों
Comment
thank you very much kushwaha sir ji..........
बेहतरीन गजल, बधाई
Good morning Seema mam............... thanks for comment ........ thanks a lot............
Ji parveen ji ......... I will try my best......... thanks for coming on my post............
सादर नमस्कार राजेश मैम............ जी मैं शुक्रगुजार हूँ आपकी कि आपने अपने कीमती समय में से कुछ समय मुझे दिया
लेकिन आप पहले भी मेरी रचनाओ को पढ़ चुके हो जिसके लिए मैं दिल से आपका शुक्रिया करती हूँ........आपको मेरी इस रचना ने
गमगीन कर दिया इसके लिए माफ़ी चाहती हूँ........ समय और अपनी अनमोल प्रतिक्रिया देने के लिए आपका आभार मैम ......... :)
Thanks a lot Er. Ganesh Jee "Bagi" sir ji.......... encourage krne ke liye bahut bahut shukriya .........
सादर नमस्कार प्राची मैम............ आपकी हर एक बात से सहमति रखती हूँ ! यह सिर्फ एक रचना है, आप तो
जानते हो कि एक रचनाकार कहाँ से कहाँ पहुच जाता है ये वो भी नही जानता......... आपकी गुड wishes के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
आगे भी इसे ही मार्गदर्शन करते रहिएगा......... शुक्रिया
अतिशय निराशा की स्थिति में उपजने वाले मनोभावों का सटीक अभिव्यक्ति
Rachnatmak shailee achhi hai.Sunder prayaas ke liye badhai. sujhaw yahi hai ki wastavik jiwan me hamesha aashawadi hi rahen tabhi lakshya hasil hoga.
ग़मगीन कर दिया आपकी प्रस्तुति ने प्रतिक्रिया में जो प्राची जी ने कहा है वही मेरी समझो सोनम जी शायद मैं आपकी कोई रचना पहली बार पढ़ रही हूँ बहुत अच्छा लिखा बहुत बहुत बधाई
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