प्रश्नवाची
मन हुआ है, हैं सुलगते अभिकथन
क्या मुझे अधिकार है ये
मैं दशानन को जलाऊँ ??
खींच कर
रेखा अहम् की शक्त वर्तुल से घिरी हूँ
आइना भी क्या करे जब मैं तिमिर की कोठरी हूँ
दर्प की आपाद मस्तक स्याह चादर ओढ़ कर
क्या मुझे अधिकार है
'दम्भी 'दशानन को बताऊँ ??
झूठ, माया-मोह
ईर्ष्या के असुर नित रास करते
स्वार्थ की चिंगारियों से प्रिय सभी रिश्ते सुलगते
पुण्य पापों को बता कर सत्य पर भूरज उड़ा
क्या मुझे अधिकार है
'पातक' दशानन को जताऊँ ??
अपहरित
अंतःकरण की मुक्ति हित बलदेव बन के
बालने हैं अब दशानन सम सभी दुर्दैव मन के
बिन स्वयं हो मुक्त दुर्गुण के असित प्रतिबन्ध से
क्या मुझे अधिकार है
दुर्नय दशानन के दिखाऊँ ??
--सीमा अग्रवाल
Comment
बहुत ही सुन्दर और परिमार्जित भाषा- शैली में, अंतस में छुपे रावण का; दहन करने की छटपटाहट, मुखरित हुई है इस रचना में. कोटिशः बधाई सीमा जी.
आदरणीय सीमा जी, लाजवाब रचना ! शब्द नही बधाई को..... फिर भी, अनंत बधाइयां स्वीकारें....!
प्रश्नवाची मन हुआ है,
सुलग रहे हैं अभिकथन |
क्या मुझे अधिकार है ?
मैं जलाऊँ दशानन ||
वाह आदरणीया वाह, मन मुग्ध हो गया इस रचना से साक्षात्कार कर के, बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें इस अभिव्यक्ति पर |
बढ़िया प्रस्तुति |
शुभ विजया ||
सादर -
//कैसे धन्यवाद कहूँ !// वाह क्या बात है सौरभ जी, अब मेरे लिए भी समस्या हो गयी न कि आपको मै धन्यवाद कैसे दूं |
आप सबके द्वारा मिले प्रोत्साहन का ही परिणाम कहूँगी इसे जो आपकी इस प्रकार की प्रतिक्रिया को ग्रहण करने का मौका मिला
.......सादर आभार
आभारी हों राज़ जी आपकी उपस्थिति और सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए
आदरणीय लक्ष्मण जी आपकी उपस्थिति अत्यधिक उर्जायुक्त होती है और एक तरफ तो मन प्रसन्न कर देती है तो दूसरी तरफ नया उत्साह भर देती है प्रतिक्रया स्वरुप दी गयी आपकी पंक्तियों हेतु आभार
हृदय से धन्यवाद आदरणीय राजेश जी
प्रिय प्राची ,
आपका कहना बिलकुल ठीक है अगर इस प्रश्न को हर कोई अपने समक्ष खड़ा कर ले तो शायद बहुत से आत्मिक और मानसिक
विकारों का समाधान मिल जायेगा ..बहुत बहुत आभार आपका
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