कल फिर से जलेगा रावण
मन शांत और दिन पावन
रौनक छाई चेहरों पे ऐसे
पतझड़ में जैसे आया सावन
रावण को जलाने से पहले
अपनें भीतर भी झांको
उसके कर्मों से प्यारे
अपनें कुकर्म भी आँको
उन्नीस बीस का फर्क दिखेगा
उसके ज्यादा कुछ न मिलेगा
रावण तो था शूरवीर
पंडित था महाज्ञानी था
सीता जी का हरण किया
इसीलिए वह पापी था
उसी पाप की सजा बेचारा
आज तक वह भुगत रहा है
जिस पाप ने उसकी कीर्ति मिटा दी
उसी की आग में जल रहा है
क्या उसनें कभी रिश्वत ली ?
क्या दूध में मिलावट की ?
क्या बलात्कार किया किसी अबला का ?
क्या भ्रूण हत्या कभी की ?
क्या दहेज़ की खातिर बहू जलाई ?
क्या कभी उसने घूस खाई ?
क्या कभी किया कोई घोटाला ?
क्या अश्लील सी० डी० बनवाई
यह वोह सारे पाप हैं जो
हम सब मिलकर करते हैं
फिर भी शर्मसार होते नहीं
और सर उठाकर चलते हैं
.
दीपक शर्मा कुल्लुवी
9350078399
23 -10 -12 .
Comment
आज कल अनैतिकता का रूप विकराल हो चूका है या कहिये स्टेंडर्ड बढ़ गया है जिसे देख रावण इस सांचे में फिट नहीं बैठता उसकी गलती इस पहाड़ के सामने राई जैसी दिखती है ---आज ना तो वो रावण रहा ना वो राम हैं तो बस उच्च दर्जे के राक्षस जो इंसानियत को खाए जा रहे हैं ना जाने इनका अंत कैसे होगा ---बहुत बढ़िया प्रस्तुति हार्दिक बधाई आपको
वो ज़माना कुछ और था जब नैतिकता का तकाज़ा सिर चढ़ कर बोलता था. नृप भले कोई हो उसका असंयमित होना तक समाज स्वीकार नहीं कर पाता था. परिणति ? एक सीमा के बाद दशानन का प्रतिरूप रावण आजतक बुराइयों का प्रतिनिधित्व करता हुआ हर साल अग्नि को समर्पित होता है. आज ज़माना कुछ और है. क्या नहीं करता आज ’सहस्रानन’, मुखौटों में जीता हुआ ! फिर भी, वह उसी समाज का प्रतिनिधित्व करता है जिसे स्वयं पीड़ित रखता है.
भाई दीपक शर्माजी, आपकी प्रस्तुत कविता बहुत कुछ बोलती है. बहुत कुछ पूछती भी है. वह भी जिनके शब्द नहीं बने हैं.. .
बहुत-बहुत बधाई व विजया की शुभकामनाएँ.
//अपनें कुकर्म भी आँको
उन्नीस बीस का फर्क दिखेगा
उसके ज्यादा कुछ न मिलेगा//
आदरणीय दीपक कुल्लवी जी, इस बार तो आपने कहर ढ़ा दिया, बहुत ही सुन्दर संदेशों का सम्प्रेषण और वो भी तीखे अंदाज में | बहुत कम रचनाएँ इस कलेवर की मिलती हैं, इस अभिव्यक्ति पर बहुत बधाई और दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार हो |
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