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'' जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए ''

कस्बाई सुकून उनकी किस्मत में है कहाँ !
जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए .

कैसे बुज़ुर्ग दें उन औलादों को दुआ !
जो छोड़कर तन्हां बेगाने हो गए .

दोस्ती में पड़ गयी गहरी बहुत दरार ,
हम तो रहे वही ; वो जाने-माने हो गए .

देखते ही होती थी सब में दुआ सलाम ,
लियाकत गए सब भूल ;ये फसाने हो गए .

लिहाज के पर्दे फटे ; सब हो रहा नंगा ,
तहजीब ,शर्म , तमीज , अंधे -बहरे हो गए .

मासूमियत में है मिलावट ; बच्चे हो रहे स्मार्ट ,
कहते हैं मत सिखाओं , तुम पुराने हो गए .

शिखा कौशिक 'नूतन '

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Comment by rajesh kumari on October 30, 2012 at 10:00am

आधुनिकता की दौड़ में बदलती हुई जिंदगी और संबंधों की तस्वीर का सुन्दर नमूना पेश किया है बहुत बढ़िया प्रस्तुति

Comment by Vinita Shukla on October 29, 2012 at 8:48am

बदलते मूल्यों पर प्रश्नचिन्ह उठाती सार्थक रचना. बधाई.

Comment by shalini kaushik on October 28, 2012 at 3:24pm
 एकदम सही बात कही है आपने .बहुत सार्थक  प्रस्तुति .आभार 

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