पाप-पुण्य की कसौटी -एक लघु कथा
चरण कमल रखे तभी वहीँ पास में बैठा प्रभात का पालतू कुत्ता बुलेट उन पर जोर जोर से भौकने लगा .गुरुदेव के उज्जवल मस्तक पर क्षण भर को कुछ लकीरें उभरी और फिर होंठों पर मुस्कान .गुरुदेव ने स्नेह से बुलेट के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- ''शांत हो जाओ मैं समझ गया हूँ .ईश्वर तुम्हे मुक्ति प्रदान करें !'' गुरुदेव के इतना कहते ही बुलेट शांत हो गया और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया .वहां उपस्थित प्रभात सहित उसके परिवारीजन यह देखकर चकित रह गए क्योंकि बुलेट को शांत करना वे सभी जानते थे कि बहुत मुश्किल होता है .थोड़ी देर बाद जब गुरुदेव ने अपना निर्धारित आसन ग्रहण कर लिया तब गंभीर व् अमृततुल्य वाणी में वे कोमल स्वर में बोले - ''आप सभी चकित हैं कि आपका प्रिय जीव मुझसे क्या कह रहा था ? प्रभात ये जो श्वान योनि में है पिछले जन्म में ये एक सर्राफ था और तुम इससे उधार लेने वाले गरीब किसान .जब तुम उधार लौटने इसकी गद्दी पर गर्मी में जाते ये तुम्हे बाहर धूप में इंतजार करवाता और खुद शीतल कमरे में बैठता .इसीलिए आज ये तुम्हारे द्वार पर सर्दी-गर्मी के थपेड़े खाता है ....पर तुम दयालु हो ....इसका ध्यान रखते हो ...खाने को देते हो ...सर्दी गर्मी में इसे लू-ठंड के थपेड़ों से बचाने का प्रयास करते हो क्योंकि कहीं न कहीं तुम्हारे सूक्ष्म शरीर में पिछले जन्म में इससे लिए गए उधार का बोझ बना हुआ है .आज मेरे यहाँ प्रवेश करते ही ये जीव मुझसे कहने लगा -मुझे इस नाप्रभात के घर आज गुरुदेव आने वाले थे .गुरुदेव का सम्मान प्रभात का पूरा परिवार करता है .गुरुदेव ने ज्यों ही उनके मुख्य द्वार पर अपने रकीय जीवन से मुक्ति दिलवाइए !मैंने स्नेह से इसके मस्तक पर हाथ फेरा तो निज पाप कर्मों की अग्नि से तपती इसकी आत्मा को ठंडक पड़ी . और यह शांत भाव से बैठ गया .हम सभी के लिए यह एक उदाहरण है कि हमें अपना हर कर्म पाप-पुण्य की कसौटी पर कसकर ही करना चाहिए अन्यथा विधाता आपको दण्डित अवश्य करेंगें ! जय भोलेनाथ की !!'' गुरुदेव के यह कहते ही सब उनके चरणों में नतमस्तक हो गए .
Comment
शिखा जी, विद्वानों की राय आपके पक्ष में है, इसलिए मेरी पिपिहरी का विशेष महत्व नही रह जाता ! फिर भी, मै आपको इस लघुकथा में संप्रेषित सोद्देश्यता पूर्ण विचारों के लिए ही बधाई दे पाऊंगा, कथानक के लिए नही ! अनुज की धृष्टता समझें..... बधाई !
nice and inspiring story .
उमाशंकर जी ,सौरभ जी ,अनिल जी ,लक्षमण जी -रचना को सराहने हेतु हार्दिक आभार .पीयूष जी यदि विद्वानों की राय प्राप्त हो गयी हो तो मुझे भी उससे अवगत करवाएं ताकि मैं भी अपने लेखन में सुधार कर सकूं .
इस कथा को पढ़कर (सुनकर) गुरुदेव के समक्ष मै भी नत मस्तक हूँ
विशेष भाव में एक विशिष्ट उक्ति. दैनिक जीवन की घटनाओं के पीछे की अबूझ अवधारणाओं की तारतम्यताओं को ढूँढने का प्रयत्न करती मनोदशा के सम्यक उद्गार पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें शिखा ’नूतन’ जी.
शिखा जी .... यह बात तो सनातन सत्य है ! इस लघुकथा में उस सनातन सत्य को साफ़ सीधे कहा गया है, ये कोई कथा जैसी नही लग रही ! अन्य विद्वानों से भी राय चाहूँगा !
बहुत ही नेक जज्बातों के साथ लिखी गई लघु कथा है
अति सुन्दर ,शिक्षाप्रद है
शिखा कौशिक जी हार्दिक बधाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online