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सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !

सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !

सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !

क्षण क्षण ह्रदय उसके लिए है क्यों मेरा रोता !
 
बिन तात के अनाथ हो गया मेरा साकेत ,
अब कौन सुख की नींद होगा वहां सोता !
सीते मुझे साकेत ...........................
 
माताओं के वे मलिन मुख ; अश्रु भरे नयन ,
साकेत सकल दुःख का बोझ स्वयं ही ढ़ोता .
सीते मुझे साकेत ...........................
 
कितना विकल होगा भरत व् नन्हा शत्रुघ्न !
उर से लगा लूं उस घडी की बाँट मैं जोहता .
सीते मुझे साकेत ...........................
 
यूं तो यहाँ भी पवित्र पावन नर्मदा बहती ,
पर प्यासा ह्रदय सरयू के जल में ले रहा गोता .
सीते मुझे साकेत ...........................
 
होगें वहां साकेत में कैसे मेरे सब मित्र ?
उनके स्नेह की स्मृति से उर धैर्य खोता .
सीते मुझे साकेत ...........................
 
साकेत में आती तो होंगी अब भी षड ऋतु !
क्या अब भी श्रावण और भादो सबको भिगोता  ?
सीते मुझे साकेत ...........................
 
कितना समय हुआ साकेत से विलग हुए !
ये वियोग शूल उर में तीव्र शूल चुभोता .
सीते मुझे साकेत ...........................
 
किसने लिखी साकेत से मेरे वनवास की कथा ?
निश्चय ही कुटिल देव विष के बीज ये बोता .
सीते मुझे साकेत ...........................
 
श्वास श्वास में बसी साकेत की सुरभि  ,
साकेत सम कोई नहीं मन मेरा मोहता .
सीते मुझे साकेत ...........................
 
साकेत और राम हैं एक-दूजे के पर्याय ,
नित राम नेह धागे में प्रेम पुष्प पिरोता .
सीते मुझे साकेत ...........................
 
कर पाउँगा पुन: कभी साकेत के दर्शन ?
ये प्रश्न  दुःख - अर्णव में मुझको डुबोता .
सीते मुझे साकेत ...........................
 
जन्म -भूमि को नमन करता यहाँ से राम ,
तुझसे मिलन हो शीघ्र राम स्वप्न संजोता .
सीते मुझे साकेत ...........................
 
                                                           शिखा कौशिक ''नूतन ''
 

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on November 4, 2012 at 8:41pm

एक अलग भाव भूमि की रचना । प्रस्तुति हेतु साधुवाद और शुभकामनाएं !!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2012 at 5:29pm

सुंदर रचना सही लिखा है राम और साकेत एक दूजे के पर्याय है |

ये पंक्तिया भागई- श्वास श्वास में बसी साकेत की सुरभि ,
                      साकेत सम कोई नहीं मन मेरा मोहता
Comment by रविकर on October 30, 2012 at 5:20pm

उत्कृष्ट प्रस्तुति |
बधाई स्वीकारें बहन शिखा जी ||


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 30, 2012 at 2:48pm

अच्छी भाव-दशा का संप्रेषण हुआ है, बधाई.

श्वास श्वास में बसी साकेत की सौरभ ,  सौरभ स्त्रीलिंग में प्रयुक्त नहीं होता. या तो सौरभ के स्थान पर सुरभि कर लें.

Comment by shalini kaushik on October 30, 2012 at 1:47pm

bahut bhavpoorn apne desh ke liye ek deshbhakt ke bhav aise hi hote hain jaise ham sabhi ke vandniy prabhu shree ram ke aapne apni abhivyakti ke madhyam se prastut kiye hain .shandar prastuti aabhar 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 30, 2012 at 9:17am

प्रिय शिखा जी बहुत ही प्यारा गीत लिखा , साकेत की स्मृति में राम की मनोव्यथा का सजीव चित्रण किया वाह बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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