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सूखती नदी

उजड़ते मकान

अपना गाँव

 

कैसा विकास

लोगों की भेड़ चाल

सुख न शांति

 

गाँवों में बसा  

नदियों वाला देश

पुरानी बात 

सूखती नदी

बढ़ता गंदा नाला

मेरा शहर 

बिका सम्मान

क्या खेत खलिहान

दुखी किसान 

लोग बेहाल

गिरवी जायदाद

कहाँ ठिकाना 

सड़े अनाज

जनता है लाचार

सोये सरकार 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 1, 2012 at 11:21am

बहुत सार्थक हाइकु नादिर जी बधाई आपको |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 31, 2012 at 5:14pm

कथ्य, शिल्प और प्रस्तुति, इन तीनों मानदण्डों पर खरे उतरे आपके हाइकू एकदम से ध्यान खींचते हैं.

नादिर साहब बधाई व शुभकामनाएँ स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 31, 2012 at 11:29am

बहुत सुन्दर कथ्य और शिल्प पर सधे हुए यथार्थपरक हाइकू.हार्दिक बधाई नादिर खान जी 

कृपया ध्यान दे...

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