सूखती नदी
उजड़ते मकान
अपना गाँव
कैसा विकास
लोगों की भेड़ चाल
सुख न शांति
गाँवों में बसा
नदियों वाला देश
पुरानी बात
सूखती नदी
बढ़ता गंदा नाला
मेरा शहर
बिका सम्मान
क्या खेत खलिहान
दुखी किसान
लोग बेहाल
गिरवी जायदाद
कहाँ ठिकाना
सड़े अनाज
जनता है लाचार
सोये सरकार
Comment
बहुत सार्थक हाइकु नादिर जी बधाई आपको |
कथ्य, शिल्प और प्रस्तुति, इन तीनों मानदण्डों पर खरे उतरे आपके हाइकू एकदम से ध्यान खींचते हैं.
नादिर साहब बधाई व शुभकामनाएँ स्वीकारें.
बहुत सुन्दर कथ्य और शिल्प पर सधे हुए यथार्थपरक हाइकू.हार्दिक बधाई नादिर खान जी
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