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मेरा बेटा
छोटा है
महज़ छ: साल का
मगर
खिलौने इकट्ठे करने में
माहिर है
और खिलौने भी क्या ?
दिवाली के बुझे हुये दिये
अलग-अलग किस्म की
पिचकारियाँ
हाँ कई रंग भी है
उसके मैंजिक बॉक्स में
लाल, हरे, पीले
मगर रंगों मे फर्क
नहीं जानता
बच्चा है न
नासमझ है
होली में
पूछेगा नहीं
आपको कौन सा रंग पसंद है
बस लगा देगा
बच्चा है न
नासमझ है
हरे और पीले का फर्क
अभी नहीं जानता
उसे तो ये भी नहीं पता
होली का रंग
सब में नहीं चढ़ता
और न ही
ईद की खुशियाँ
सबको भाती हैं
मैं उसका दुश्मन नहीं हूँ
शुभचिंतक हूँ
फिर भी चाहता हूँ
वो बच्चा ही बना रहे ।

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Comment

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Comment by manoj kumar chouhan on November 8, 2012 at 3:22pm

nice one

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 6, 2012 at 5:04pm

bahut khoob. aadarniya naadir sahab.

badhai.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2012 at 1:36pm

वयस्कों ने अपने समाज को जितना रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन बना दिया है कि वह समाज बच्चों की दुनिया में खारिज है. आनन्द का नाम नहीं हुआ करता. उसकी अनुभूति होती है.  अच्छी रचना केलिये हार्दिक बधाई, नादिर भाई. .

Comment by Arun Sri on November 6, 2012 at 1:01pm

अपने बच्चे के माध्यम से अपना बचपन जीना भी बहुत ही सुखकर होता है ! इस मासूमियत इया अल्हणपन पर सारी दुनियाँ कुर्बान ! बहुत सुन्दर एहसास ! वाह !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 6, 2012 at 9:46am

सुन्दर भावाभिव्यक्ति,बधाई 

Comment by रविकर on November 6, 2012 at 9:30am

सशक्त रचना |
बधाई आदरणीय |

होली में झटपट मले, चेहरे पे मुस्कान |
लाल हरे के भेद से, बच्चा है अनजान |
बच्चा है अनजान, दिवाली दीप बटोरे |
क्रिसमस ईद मनाय, खिलौने से भर झोले |
रहता खुद में मस्त, सजाता रहे रंगोली |
बच्चा बच्चा रहे, मनाये यूँ ही होली ||


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 5, 2012 at 4:54pm

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति 

मैं उसका दुश्मन नहीं हूँ
शुभचिंतक हूँ
फिर भी चाहता हूँ 
वो बच्चा ही बना रहे.............

क्योंकि क्षणिक ही सही, 

शायद उसके बचपन में जी लेता हूँ मैं भी अपना बिछुड़ा बचपन///

हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर आदरणीय नादिर खान जी 

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