मै भी अभी जिन्दा हूँ !!
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तीव्र झोंके ने पर्दा उड़ा दिया
सारे बाज -इकट्ठे दिखा दिया
चालबाज, कबूतरबाज , दगाबाज
अधनंगे कुछ कपडे पहनने में लगे
दाग-धब्बे -कालिख लीपापोती में जुटे
माइक ले बरगलाने नेता जी आये
जोकर से दांत दिखा हँसे बतियाये
“ये मंच अब हमारा है” खेती है हमारी
हम 'मालिक' हैं पैसे पेड़ पर नहीं उगते
चाहे हम भांग बोयें कैक्टस लगायें
थाली लोटे लंगोटी गिरवी रख आयें
उत्पादन दिखाएँ रोजगार के अवसर बताएं
नहीं दस बीस को रोजगार भत्ता दिलाएं
सोचता हूँ कैसे घिघियाते तुमरे पीछे हम धाये
नोट दे वोट को हम खरीद के लाये
तुम दर्शक हो सड़े टमाटर अंडे जूते उछालो
पुतला बनाओ जलाओ मन शान्त कर जाओ
जिसकी लाठी उसकी भैंस समझ जो पाओ
आँख न दिखाओ हाड मांस जान तुम बचाओ
'ये मंच हमारा है ' जूतम -जुटती गुत्थम -गुत्थी
मूल अधिकार हमारा है जो हमें प्यारा है
भीड़ में दांत निपोरे खिखियाते उनके लोग
अंगारे सी आँखें बड़े बाज कबूतर का भोग
पतली गली से निकल राम लीला की ओर
मै चल पड़ा , सूर्पनखा रावण दुःशासन को छोड़
गांधी के बन्दर सा आँख मुंह कान बंद किये
बैठा हूँ- दुर्योधन-शकुनी मामा नहीं मरे
द्यूत क्रीडा जारी है युधिष्ठिर हारे हैं
कृष्ण नहीं विदुर नहीं सोच सोच कुढ़ता हूँ
चीख है पुकार है मै भी अभी जिन्दा हूँ !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर ५'
२५.९.१२ कुल्लू यच पी
मंगलवार ७.१५-७.४९
Comment
आदरणीया राजेश कुमारी जी ..आभार प्रोत्साहन हेतु दशा आज की राजनीति की बड़ी खराब है बद से बदतर होती ...जो चपेट में पड़ा है झेल रहा वही जानता है ..
सुन्दर और तीखे व्यंग्य को समाहित किये सार्थक रचना. बधाई भ्रमर जी.
बढ़िया व्यंग्यात्मक प्रस्तुति के लिए बधाई सुरेन्द्र भ्रमर जी
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