उस कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है ! मंगल बाहर उत्सुक सा चहलकदमी कर रहा है ! कमरे से कुछ औरतों के बोलने की, और बीच-बीच में एक औरत के चींखने की आवाज आ रही है ! ये सब झूमरी के प्रसव का आयोजन है !...................कुछ समय बाद ! “केहाँ...केहाँ...केहाँ !” बच्चे के रोने की आवाज हुई ! अब मंगल बेचैन हो उठा ! कि तभी कमरे का दरवाजा खुला, और रामधुनी काकी बाहर निकलीं !
“के हुवा काकी?” मंगल ने पूछा !
“वही, जे का डर था !” काकी मुह बिचकाते हुवे बोलीं !
“मतलब लईकी, कौनो बात नही काकी, अब जे हुवा सो अपना ! वईसे, ऊ सरकारी अफसर कह रहे थे कि लईकी के लिए बड़ी सरकारी-सहूलियत है ! जे हुई है, तो बेड़ा पार लगाना तो पड़ेगा !”
“अरे मंगल! एतने मुसीबत थोड़े है, लईकी त लईकी, ओपर रंग काला ! रूपे-रंग त लईकी के पास होत है, ई ओमे भी खोटी...!”
“काली.....” कहते हुवे मंगल सर पकड़कर धम्म से बैठ गया !
-पियुष द्विवेदी ‘भारत’
Comment
आदरणीय अविनाश जी, धन्यवाद !
आदरणीय प्रदीप जी, धन्यवाद !
bahut sunder Piyush bhai
रंग भेद और लिंग भेद दोनों.
बधाई.
धन्यवाद आदरणीय राजेश कुमारी जी.....!
सच्चाई बयान करती हुई लघु कथा एक तो लड़की ऊपर से काली जैसे कोई पहाड़ टूट गया हो ,लोगों की संकीर्ण सोच का आइना दिखाती हुई बहुत अच्छी लघु कथा
धन्यवाद शालिनी जी....!
भावों को सराहने के लिए धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी....! शिल्प पर प्रयास जारी है,,,,,,,,,!
एक उचित भाव-दशा का निर्वहन हुआ है. शिल्पगत प्रयास की मांग करती इस रचना के लिये शुभकामनाएँ.
ek sachchai ko behad khobsurati se byan karti laghu katha .nice presentation
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