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उस कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है ! मंगल बाहर उत्सुक सा चहलकदमी कर रहा है ! कमरे से कुछ औरतों के बोलने की, और बीच-बीच में एक औरत के चींखने की आवाज आ रही है ! ये सब झूमरी के प्रसव का आयोजन है !...................कुछ समय बाद ! “केहाँ...केहाँ...केहाँ !” बच्चे के रोने की आवाज हुई ! अब मंगल बेचैन हो उठा ! कि तभी कमरे का दरवाजा खुला, और रामधुनी काकी बाहर निकलीं !

“के हुवा काकी?” मंगल ने पूछा !

“वही, जे का डर था !” काकी मुह बिचकाते हुवे बोलीं !

“मतलब लईकी, कौनो बात नही काकी, अब जे हुवा सो अपना ! वईसे, ऊ सरकारी अफसर कह रहे थे कि लईकी के लिए बड़ी सरकारी-सहूलियत है ! जे हुई है, तो बेड़ा पार लगाना तो पड़ेगा !”  

“अरे मंगल! एतने मुसीबत थोड़े है, लईकी त लईकी, ओपर रंग काला ! रूपे-रंग त लईकी के पास होत है, ई ओमे भी खोटी...!”

“काली.....” कहते हुवे मंगल सर पकड़कर धम्म से बैठ गया !

-पियुष द्विवेदी ‘भारत’   

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Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 10, 2012 at 7:46am

आदरणीय अविनाश जी, धन्यवाद !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 10, 2012 at 7:45am

आदरणीय प्रदीप जी, धन्यवाद !

Comment by AVINASH S BAGDE on November 3, 2012 at 8:27pm

bahut sunder Piyush bhai

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 3, 2012 at 3:50pm

रंग भेद और लिंग भेद दोनों. 

बधाई.

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 3, 2012 at 8:14am

धन्यवाद आदरणीय राजेश कुमारी जी.....!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 2, 2012 at 8:41pm

सच्चाई बयान करती हुई लघु कथा एक तो लड़की ऊपर से काली जैसे कोई पहाड़ टूट गया हो ,लोगों की संकीर्ण सोच का आइना दिखाती हुई बहुत अच्छी लघु कथा 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 2, 2012 at 4:14pm

धन्यवाद शालिनी जी....!

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 2, 2012 at 4:14pm

भावों को सराहने के लिए धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी....! शिल्प पर प्रयास जारी है,,,,,,,,,!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 2, 2012 at 11:13am

एक उचित भाव-दशा का निर्वहन हुआ है. शिल्पगत प्रयास की मांग करती इस रचना के लिये शुभकामनाएँ.

Comment by shalini kaushik on November 2, 2012 at 12:33am

ek sachchai ko behad khobsurati se byan karti laghu katha .nice presentation 

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