मौत भी अब तो बहाने बनाने लगी है दोस्तों
देखकर उनको ये भी नखरे दिखाने लगी है दोस्तों
हार जाना ही था शायद हिम्मत को मेरी
किस्मत भी मुझको चिढाने लगी है दोस्तों
क्या थी जिन्दगी और क्या हो गई है
रौशनी भी अब डराने लगी है दोस्तों
खो गये मेरे ख्वाब इस शहर में न जाने कहाँ
हकीक़त ही बस अब भाने लगी है दोस्तों
हो गई दोस्ती मेरी गमो से कुछ यूँ
खुशियाँ अब मुझको रुलाने लगी है दोस्तों
कहो तुम ही अब अंजाम-ए-जिन्दगी क्या हो
ख्वाहिशे तो अब बहलाने लगी है दोस्तों
Comment
सोनम सैनी जी, बढ़िया प्रयास है, बधाई हो |
“When one door closes another door opens, but we so often look so long and so regretfully upon the closed door, that we do not see the ones which open for us.”
- Alexander Graham Bell -
“When one door of happiness closes, another opens; but often we look so long at the closed door that we do not see the one, which has been opened for us.”
- Helen Keller -
प्रिय सोनम जी आपकी रचना पढ़ कर फिलहाल तो सिर्फ इतना ही लिख पा रही हूँ.
जिस निराशाजनक भावदशा को यह रचना अभिव्यक्त करती है, वह शायद सभी की ज़िंदगी में कभी न कभी किसी न किसी रूप में आती है, मगर जो इस दशा पर जीत हासिल कर लेता है, वह फिर प्रगति मार्ग पर इतना आगे पहुँचता है, जितना कि वो भी कल्पना नहीं कर सकता.
सस्नेह .
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