मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||
लय, रस, भाव, शिल्प संग प्रीति |
वैचारिक सुप्रवाह की रीति ||
अलंकार से कथ्य चमकता |
उपमानों से शब्द दमकता ||
यगण-तगण जैसे पाशों से,
होता कोई साथ कहाँ है |
मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||
अनियमित औ स्वच्छंद गति है |
भावानुसार प्रयुक्त यति है ||
अभिव्यक्ति ही प्रधान विषय है |
तनिक नहीं इसमें संशय है ||
ह्रदयचेतना से सिंचित ये,
ऐसा यातायात कहाँ है |
मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||
Comment
मुक्त छंद में भी मिले, बढ़िया भाव बहाव |
नई विधा यह डालती, सचमुच बड़ा प्रभाव ||
आभार आदरणीय ||
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