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जो कर सके तो कर अभी.. . // -- सौरभ

शिथिल मनस पे वार कर, जो कर सके तो कर अभी..
प्रहार बार-बार कर, जो कर सके तो कर अभी.. !

अजस्र श्रोत-विन्दु था मनस कभी बहार का
यही हृदय उदाहरण व पुंज था दुलार का
प्रवाह किंतु रुद्ध अब, विदीर्ण-त्रस्त स्वर लगें
सनातनी विचार के न तथ्य ही प्रखर लगें

मग़र किसी को दोष क्यों, हमीं युगों से सो रहे
असह्य फिर प्रहार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..

कभी यही समाज था प्रबल, कि लोग शांत थे
विचारवान थे सभी, सुसभ्य गाँव-प्रांत थे
मग़र चली वो आँधियाँ सचेत तक बहक गये
रवां जहाँ सुतंत्र था, विचार तक दहक गये

समाज क्रुद्ध, राज भ्रष्ट, देख लोग पस्त हैं
न पार्श्व से पुकार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..

सुरम्य घाटियों से देख जा रही प्रभा किधर
जघन्य पाप के विरुद्ध क्या करे दुआ असर
विकल पड़ा है व्यक्ति यों, कि त्राण है, न राह है
विचारशील के लिये न वृत्ति का प्रवाह है

झिंझोर दें, हुँकार कर.. . तमस प्रभाव दे मिटा
हुँकार जोरदार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..

हृदय सन्देह लबलबा तभी लचर लिहाज़ हैं
न दीखते उपाय ही, अहं सने रिवाज़ हैं
विदग्ध राष्ट्र-भावना तभी प्रसूत भाव से
अमर्त्य वीर थे सदा प्रसिद्ध हम स्वभाव से

विद्रोह-ज्वाल से भरे विचार रौद्र झोंक दे 
प्रघात बेशुमार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..

*****************

--सौरभ

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 31, 2013 at 7:14pm

डॉ, दिलीप मित्तल,  आपको मेरा प्रयास रुचिकर लगा इस हेतु मैं आपका आभारी हूँ.

हार्दिक धन्यवाद

Comment by Dr Dilip Mittal on March 31, 2013 at 6:53pm

देश को आज इस तरह के जोश की जरुरत है, 

जोशपूर्ण कविता के लिए बधाई 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 12, 2012 at 4:30pm

भाई जवाहर लाल सिंहजी, आपको मेरी रचना ’जो कर सके तो कर अभी..’ पसंद आयी, यह मेरे लिए भी परम संतोष की बात है. आप द्वारा हुए उत्साहवर्द्धन हेतु आपका अत्यंत आभारी हूँ.

प्रस्तुत रचना पर आपने अपनी प्रतिक्रिया दी, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, भाईजी.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 12, 2012 at 4:55am

आदरणीय सौरभ महोदय, नमस्कार!

एक एक पंक्ति जोश जगाती हुई ! आपका हार्दिक नमन!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 15, 2012 at 10:22am

भाई फूलसिंह जी आपको प्रस्तुत गीत के अंतर्निहित भाव पसंद आये, मेरा श्रम सार्थक हुआ.

हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 15, 2012 at 10:21am

आदरणीया राजेश कुमारीजी, आपकी प्रशंसा और शुभ विचार से रचना कुछ और धनी हुई है.

आपका हार्दिक आभार.

Comment by PHOOL SINGH on November 12, 2012 at 1:25pm

पाण्डेय जी प्रणाम.......

सुंदर अतिसुंदर भावपूर्ण रचना  ......"सपरिवार सहित आपको शुभ दीपावली"

फूल सिंह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 7, 2012 at 8:33pm

आदरणीय सौरभ जी इस गीत को पढ़कर तो एक निष्क्रिय निश्चेष्ट ह्रदय में भी उबाल आ जाएगा  शब्द दर शब्द कितना ओज पूर्ण प्रवाह देखते ही बनता है आज के वक़्त में आज की पुकार है ये रचना 

ये पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगी  

हृदय सन्देह लबलबा तभी लचर लिहाज़ हैं 
न दीखते उपाय ही, अहं सने रिवाज़ हैं 
विदग्ध राष्ट्र-भावना तभी प्रसूत भाव से 
अमर्त्य वीर थे सदा प्रसिद्ध हम स्वभाव से 

विद्रोह-ज्वाल से भरे विचार रौद्र झोंक दे  
प्रघात बेशुमार कर, जो कर सके तो कर अभी.. ..

 सच में भावनाओं का सैलाब  भरा है इस गीत में बहुत बहुत बधाई इस उत्कृष्ट गीत के लिए 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 7, 2012 at 7:40pm

आदरणीय सतीशभाईजी, आपका अनुमोदन मेरे लिये खास अर्थ रखता है.

आपका सादर आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 7, 2012 at 7:34pm

रचना की मूल भावना को स्वर देने के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ, सीमाजी.  कहना न होगा, शिथिल मनस ही समस्त विसंगतियों के जीते जाने का कारण है.  आपको प्रस्तुति के कथ्य, भाव व प्रयास रुचिकर लगे यह अपार संतोषकारी है. शब्दों के चयन के क्रम में कोई विशेष आग्रह तो नहीं बस अनायास ही सही तत्सम और देसज शब्द प्रवाह में आ जाते हैं . ..

सादर

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