दोहा सलिला
नीति के दोहे
संजीव 'सलिल'
*
रखें काम से काम तो, कर पायें आराम .
व्यर्थ घुसेड़ें नाक तो हो आराम हराम।।
खाली रहे दिमाग तो, बस जाता शैतान।
बेसिर-पैर विचार से, मन होता हैरान।।
फलता है विश्वास ही, शंका हरती बुद्धि।
कोशिश करिए अनवरत, 'सलिल' तभी हो शुद्धि।।
सकाराsत्मक साथ से, शुभ मिलता परिणाम।
नकाराsत्मक मित्रता, हो घातक अंजाम।।
दोष गैर के देखना, खुद को करता हीन।
अपने दोष सुधारता, जो- वह रहे न दीन।।
औसत बुद्धि करे सदा, घटनाओं पर सोच।
तेज दिमाग विकल्प को सोचे रखकर लोच।।
जो महान वह मौन रह, करता काम तमाम।
दोष गैर के देख कर, करे न काम तमाम।।
रचनात्मक-नैतिक रहे, चिंतन रखिए ध्यान।
आस और विश्वास ही, लेट नया विहान।।
मत संकल्प-विकल्प में, फँसिए आप हुजूर।
सही निशाना साधिए, आयें हाथ खजूर।।
बदकिस्मत हैं सोचकर, हों प्रिय नहीं हताश।
कोशिश सकती तोड़ हर, असफलता का पाश।।
***
Comment
परम आदरणीय सलिल जी
सादर, सुन्दरतम दोहों के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.
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