मुक्तिका:
तनहा-तनहा
संजीव 'सलिल'
*
हम अभिमानी तनहा-तनहा।
वे बेमानी तनहा-तनहा।।
कम शिक्षित पर समझदार है
अकल सयानी तनहा-तनहा।।
दाना होकर भी करती मति
नित नादानी तनहा-तनहा।।
जीते जी ही करी मौत की
हँस अगवानी तनहा-तनहा।।
ईमां पर बेईमानी की-
नव निगरानी तनहा-तनहा।।
खीर-प्रथा बघराकर नववधु
चुप मुस्कानी तनहा-तनहा।।
उषा लुभानी सांझ सुहानी,
निशा न भानी तनहा-तनहा।।
सुरा-सुन्दरी का याचक जग
भांग-भवानी तनहा-तनहा।।
'सलिल' संजोये प्यास-आस पर
श्वास भुलानी तनहा-तनहा।।
***
Comment
आदरणीय आचार्य जी, बहुत ही उम्दा भाव, बहुत ही खुबसूरत मुक्तिका, बधाई हो |
arun ji
bahut - bahut abhar.
आदरणीय श्री ! जीवन दर्शन का निचोड़ है इस मुक्तिका में हर बंद रहस्यों के कई किवाड़ खोलता , सीख देता !! हार्दिक साधुवाद आचार्य श्री !!
अशोक जी, लक्ष्मण प्रसाद जी, वीनस जी, सौरभ जी, पीयूष जी
आपकी गुणग्राहकता को नमन.
बहुत सुन्दर आदरणीय.......बधाई स्वीकारें !
हिन्दी की मात्राओं का बखूबी इस्तमाल ! वाह ! अंतर्निहित भावों और कहन के लिये विशेष बधाई, आदरणीय.
वाह आदरणीय रचना में भाषा का ऐसा सुन्दर प्रयोग देखने को मिला कि पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया
विशेष रचना के लिए विशेष बधाई स्वीकारें
ईमां पर बेईमानी की-
नव निगरानी तनहा-तनहा।
सादर प्रणाम, सुन्दर मुक्तक के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय सलिल जी
परम आदरणीय सलिल जी
सादर प्रणाम, सुन्दर मुक्तक के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.
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