उम्र की दौड़ में हम बदल जाते हैं
वक्त की ठोकरों से संभल जाते हैं l
चाँद-तारों की हसरत है जिनको नहीं
सूखी रोटी खुशी से निगल जाते हैं l
कूड़े-कर्कट में पाया हुआ जो मिला
उन खिलौनों से ही वो बहल जाते हैं l
हैं जहाँ में बहुत जिनमें है वो हवस
जो भी देखा उसी पर मचल जाते हैं l
बिन किसी बात हम उनको खलने लगें
इस दुनिया में ऐसे भी मिल जाते हैं l
राजे-दिल खोलो जिसको अपना समझ
मीठे लफ़्ज़ों से अपने वो छल जाते हैं l
मजलिसों में भी जब होने लगती बहस
बिन सबब जूते लोगों के चल जाते हैं l
अब ये जमाना भरोसे के काबिल नहीं
कुछ वारदातों से दिल भी दहल जाते हैं l
-शन्नो अग्रवाल
Comment
शालिनी जी, सूर्या बाली जी एवं नादिर खान जी, मेरी गज़ल पसंद करने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया.
हर शेर खरा सोना है,कुछ रचनाओं को बार बार पथने को मन करता है
ये रचना भी उन्ही में से एक है ।
लाजवाब गज़ल ....
शन्नो जी सादर नमस्कार ! बहुत ही सुंदर ग़ज़ल काही है आपने। पढ़ कर मज़ा आ गया...और ये शेर तो हासिले ग़ज़ल शेर है...
कूड़े-कर्कट में पाया हुआ जो मिला
उन खिलौनों से ही वो बहल जाते हैं l...
सच्चाई और दर्द बयान करता हुआ।
दाद कुबूल करें !
.बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति . बधाई
अशोक जी, रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक धन्यबाद.
अब ये जमाना भरोसे के काबिल नहीं
कुछ वारदातों से दिल भी दहल जाते हैं l..........वाह!अ
बहुत सुन्दर भाव प्रदर्शित करती रचना के लिए सादर बधाई स्वीकारें आदरेया शन्नो अग्रवाल जी.
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