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 "प्रेमहीन जीवन शून्य है, ये मुझे बेहतर पता है ! इसलिए उसकी पीड़ा को समझता हूं !"  आकाश  शून्य की ओर देखते हुवे प्रतीक से बोला !

"किसकी पीड़ा? तुम्हारी प्रेमिका?" प्रतीक बोला !

"ना! एक मित्र है, बहुत प्रेम करता है एक से, पर कह नही पा रहा है !"

“कौन मित्र?”

“अभिनव, कॉलेज वाला...!”

“जानता हूं ! किसको चाहता है? रहती कहाँ है?”

“जैसा कि उसने बताया है, तुम्हारे ही मोहल्ले में !”

“क्या बात कर रहे हो, ऐसा है, तब तो तुम्हारे दोस्त की समस्या हल..!” अबकी प्रतीक उत्तेजित था !

“पता नही ! आसान नही लगता !”

“आसान कर देंगे ! दो प्रेमियों को मिलाने से बड़ा पुण्य क्या ! पर प्रेमिका का नाम तो बताओ?”

“अनुराधा....!”

“क्या, उसकी इतनी हिम्मत, जिन्दा नही छोडूंगा कमीने को, खून कर दूँगा !” प्रतीक अचानक गुस्से में आ गया था ! अनुराधा उसकी बहन का नाम था !

-पियुष द्विवेदी ‘भारत’

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Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 20, 2012 at 11:04am

पीयूष जी बिलकुल  सत्य । हर कोई चाहता है भगत सिंह और आज़ाद जैसे सपूत पैदा हों लेकिन दूसरे के घर में , अपने घर में नहीं...

दोहरी मानसिकता को प्रदर्शित करते लघु लेख पर बधाई स्वीकार करें !.

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 20, 2012 at 6:03am

बहुत सुन्दर लघुकथा पियूष जी ऐसे दोहरे मापदंड का खेल अक्सर देखने को मिलता है. बधाई स्वीकारें.

Comment by shalini kaushik on November 20, 2012 at 1:06am

ये तो सच्चाई है कोई कहानी नहीं आपने कहानी रूप में बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत कर दी  . बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 19, 2012 at 7:41pm

कितने दोहरे मापदंड में जीते हैं लोग बहुत सुन्दरता से इस लघु कथा में चित्रित हो रहा है बहुत अच्छी लिखी बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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