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जल ही जीवन है.(बैरवे छंद)

तीन भाग जल धरती,शेष जमीन,

प्रकृति  सींचे  वरना, नीर विहीन/

धरती जल को दुहता,मनुज प्रवीण,

जाने जल बिन होगा, जीवन  हीन/

प्रकृति  भक्षक बनते,  मानव दीन,

बरसें  मेघ   लगाओ, वृक्ष  नवीन/

नद जल सारा खींचा, कूप बनाय,

बिन  बरखा के धरती, सूखी जाय/

जीव न को बिन पानी,अब बच पाय,

भूजल को तुम  रखना, सदा बचाय/

वृक्ष  लगाओ अँगना, धरा  सुहाय,

बादल बरसे  नदिया, नीर  बहाय/

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 20, 2012 at 3:15pm

आदरणीय अशोक जी, सादर अभिवादन 

तकनीकी का मोहे ज्ञान नहीं दोहा है छंद 

संसाधन दोहन कर रहे मानव बुद्धी मंद 

मानव बुद्धी मंद  बनते अपने को चातुर 

काट वृक्ष हंता बन पेट भरने को आतुर 

समय अभी चेतो कुछ अधिक  न बिगड़ा 

पेड़ लगाओ पानी बचाओ धरती पे होगा झगडा 

बधाई.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 20, 2012 at 1:49pm
बहुत सुंदर बिरवे छंद भाई अशोक रक्ताले जी

जल ही जिएँ है, जल बिन नहीं रक्त तन आले जी

भूजल के सिंचित करे उसे न दोहों बरबस जी

बढ़िया सन्देश दिया अपने बधाई रक्ताले जी ।

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