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हर दुःख मुझे देता है प्रेरणा

हर दुःख मुझे देता है प्रेरणा

संघर्ष को और बढाने की |

हर हार मुझे देती है आशा

जय को करीब लाने की |

 

बिखर जाये जब मन मेरा

मैं उसके मोती चुन लेता हूँ |

निराशा के हर अंगारे को

मैं अमृत समझ के सहता हूँ |

 

ये निराशा मेरे प्रेम की भाषा

जल्दी ही बन जाने की |

हर दुःख मुझे देता है प्रेरणा.....

 

पतझर में जो झर गये पत्ते

आने पे सावन खिल जायेंगे |

मनुष्य यदि प्रयास करे तो

बिछड़े क्षण भी मिल जायेंगे |

 

जीवन डगर पर कदम बढ़ाना

ये बात नहीं भूल जाने की |

हर दुःख मुझे देता है प्रेरणा.....

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Comment

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Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 26, 2012 at 7:26pm

डा. प्राची सिंह जी, आपके विचारों के लिए बहुत धन्यवाद| बताई गयी दोनों पंक्तियों को साधने का प्रयत्न करता हूँ| 

सादर,

चंद्रेश 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 26, 2012 at 7:25pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, आपके आशीर्वचनो के लिए बहुत धन्यवाद| ऐसे ही आशीर्वाद बनाए रखें |

सादर,

चंद्रेश 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 26, 2012 at 12:19pm

बहुत सुन्दर भावों को अभिव्यक्त किया है आपने इस गीत में चंद्रेश जी , हार्दिक बधाई 

ये निराशा मेरे प्रेम की भाषा

जल्दी ही बन जाने की |

पतझर में जो झर गये पत्ते

आने पे सावन खिल जायेंगे |...इन दो पंक्तियों  को थोडा और साधने का प्रयत्न करे.

एक भाव प्रधान बेहतरीन रचना.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 26, 2012 at 11:13am

सुन्दर भाव पसंद आये सन्देश देती रचना बधाई |

कृपया ध्यान दे...

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