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तेरे नयनों में भर आये नीर तो, लहू मैं बहा दूं माँ,

न्योच्छार तुझपे जीवन करूँ, क्या जिस्म क्या है जाँ |

 

तू धीर गंभीर हिमाला को

मस्तक पे धारण करे |

तू चंचल गंगा जमुना का

प्रतिक्षण वरण करे |

विविध भी एक हैं , देख ले चाहे जहां |

 

जब उठा के लगा दें

हम मस्तक पे धूल |

बसंत है चारों तरफ

खिले मुस्कान के फूल |

नफरत भी बन जाती है, प्रेम का समाँ |

 

तेरे बेटों की ओ माँ

बस यही है आरजू |

माटी को महकाने की

करें हर पल जुस्तजू |

प्रेम की बरसात करें, अगर नफ़रत का उठे धुंआ |

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Comment

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Comment by shalini kaushik on November 27, 2012 at 12:15am

बहुत प्रेरक सार्थक प्रस्तुति .आभार 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 26, 2012 at 10:23pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी, आपकी सराहना के लिए हार्दिक आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 26, 2012 at 8:43pm

भारत माँ के प्रति सुन्दर भाव समर्पित करती हुई प्रस्तुति बहुत अच्छी 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 26, 2012 at 7:24pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, आपके आशीर्वचनो के लिए बहुत धन्यवाद| ऐसे आशीर्वादों के सहारे ही चल रहा हूँ |

सादर,

चंद्रेश 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 26, 2012 at 11:15am

भारत माँ के प्रति सुन्दर भाव अभियक्त किया है पसंद आये सन्देश देती रचना बधाई श्री चंद्रेश कुमार छात्लानी जी 

कृपया ध्यान दे...

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