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नक्‍कारों में
गूंज रही फिर
तूती की आवाज
नहीं जागना
आज पहरूए
खुल जाएगा राज

लाचार कदम
बेबस जनता के
होते ही
कितने हाथ
आधे को
जूठी पत्‍तल है
आधे को
नहीं भात

अकदम सकदम
जरठ मेठ है
और भीरू
युवराज
भव्‍य राजपथ
हींस रहे हैं
सौ-सौ गर्धवराज

आओ खेलें
सत्‍ता-सत्‍ता
जी भर खेलें
फाग
झूम-झूम कर
आज पढ़ेंगें
सारी गीता
नाग

जाओ
इस नमकीन शहर से
तूती अपने गांव
कंधों पर यूं
सिर ना रक्‍खो
खो जाएंगें
पांव

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Comment

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Comment by shalini kaushik on November 26, 2012 at 11:51pm

very nice presentation .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 26, 2012 at 8:51pm

बहुत बढ़िया कटाक्ष करती रचना सच में आज के राज पथ का यही हाल है अँधेरी  नगरी चौपट राजा कह सकते हैं

कृपया ध्यान दे...

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