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बंजरों के लोग भी अब कस्तियाँ लेने लगे

कार में बैठे शराबी चुस्कियाँ लेने लगे
तब भिखारी भी शहर के आशियाँ लेने लगे

रूठना आता नहीं है पर दिखावा कर लिया
रूठने के बाद हम ही सिसकियाँ लेने लगे


घूमने आये थे मंत्री जो निरिक्षण में अभी
चाय पीकर वो भी देखो झपकियाँ लेने लगे

रोज-ए-महसर की ख़बरें इस कदर छाने लगी
बंजरों के लोग भी अब कस्तियाँ लेने लगे

छोड़ आये थे जिसे हम "दीप" बन के बेबफा
याद उसने जब किया हम हिचकियाँ लेने लगे

संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on December 6, 2012 at 12:36am

वह क्या कहने
अच्छी ग़ज़ल कह रहे हैं
बधाई स्वीकारें

छोड़ आये थे जिसे हम "दीप" बन के बेबफा

याद उसने जब किया हम हिचकियाँ लेने लगे
हासिले ग़ज़ल
वाह

रोज-ए-महसर के वज्न पर फिर से गौर करें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 6, 2012 at 12:22am

छोड़ आये थे जिसे हम "दीप" बन के बेबफा
याद उसने जब किया हम हिचकियाँ लेने लगे

बहुत खूब.

एक अरसे के बाद आपको देखना सुखद लगा. विश्वास है, आप स्वस्थ और प्रसन्न होंगे, संदीपजी.

Comment by नादिर ख़ान on December 5, 2012 at 5:19pm

रोज-ए-महसर की ख़बरें इस कदर छाने लगी
बंजरों के लोग भी अब कस्तियाँ लेने लगे 

छोड़ आये थे जिसे हम "दीप" बन के बेबफा 
याद उसने जब किया हम हिचकियाँ लेने लगे

 वाह संदीप जी बहुत खूब 

बहुत उम्दा गज़ल 

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