आसमाँ के देखता है ख्वाब आम आदमी
चाहता है माहो-आफताब आम आदमी
खुद चुभन सहे मगर करे नहीं वो उफ़ तलक
कायनाते खार में गुलाब आम आदमी
रात दिन गुजारता है धूप छाँव भूल कर
काम कर रहा है बेहिसाब आम आदमी
वक़्त की तरह बदल बदल के गिरगिटी हुआ
बन के पल में टूटता हुबाब आम आदमी
शर्म लाज छोड़ बंदिशों की रस्म तोड़ के
हो रहा है आज कामयाब आम आदमी
हर्फ़ हर्फ़ आह से भरा पढ़ें उलट पलट
दीमकों के फेवरिट किताब आम आदमी
पर्वतों की रूह कांपने लगी है देख कर
आँख भर बहा रहा जो आब आम आदमी
जुगनुओं से रौशनी उधार ले के कर रहा
दीपकों से तेल का हिसाब आम आदमी
मीडिया का साथ पा के हौसलों के पर लगा
ला रहा है आज इन्कलाब आम आदमी
दर्दो-गम की एक ही दवा मिली जहान में
पी रहा है "दीप" यूँ शराब आम आदमी
Comment
आदरणीय वीनस सर जी आदरणीय अरुण जी सादर प्रणाम
आपकी दाद पा के धन्य हुआ कुछ वक़्त की कमी से जूझ रहा हूँ
बिलम्ब के लिए क्षमा चाहता हूँ
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
सुन्दर
संदीप भाई एक आम आदमी पर लिखी गई बेहद लाजवाब ग़ज़ल है वाह मज़ा आ गया, बधाई स्वीकारें
आदरणीया शालिनी जी , राजेश कुमारी जी , सीमा अग्रवाल जी , आदरणीय अशोक जी
सादर प्रणाम
आपने मेरी इस ग़ज़ल को सराहा इसके लिए मैं आप सभी का आभारी हूँ
ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आसमाँ के देखता है ख्वाब आम आदमी
चाहता है माहो-आफताब आम आदमी........बहुत खूब
रात दिन गुजारता है धूप छाँव भूल कर
काम कर रहा है बेहिसाब आम आदमी.....खास आज आम की वजह से ही खास हैं
बढ़िया ग़ज़ल हमेशा की तरह ..
फिर से एक बेहतरीन ग़ज़ल कही है प्रिय संदीप बहुत बहुत बधाई सभी शेर बढ़िया कहे
आम आदमी कि पीडाओं पर लिखी सुन्दर गजल के लिए बधाई स्वीकारें आद. संदीप जी.
शर्म लाज छोड़ बंदिशों की रस्म तोड़ के
हो रहा है आज कामयाब आम आदमी
सही कहा आपने .
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