For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल "बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ"

===========ग़ज़ल=============
बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ
वज्न- २ २ १ - २ १ २ १ - १ २ २ १ - २ १ २

चेह्रा है आपका या हसीं माहताब है
ये नाजुकी बदन की बड़ी लाजबाब है

गोरा बदन है ऐसे के छू लें तो सुर्ख हो
जुल्फें हैं रेशमी औ लबों पे गुलाब है

सब लोग घूरते हैं तुझे सर से पा तलक
निकलो न बेनकाब ज़माना ख़राब है

पढने लगे तो डूब गए गर्क-ए-दीद में 
आँखें नहीं वो इश्क की ताज़ा किताब है

उनसे मिली निगाह तो कहने लगी सुनो
आखों से "दीप" पी लो पुरानी शराब है

संदीप पटेल "दीप"

Views: 662

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PHOOL SINGH on November 12, 2012 at 1:30pm

संदीप  जी प्रणाम.......

सुंदर अतिसुंदर भावपूर्ण गजल ......"सपरिवार सहित आपको शुभ दीपावली"

फूल सिंह

Comment by Arun Sri on November 6, 2012 at 12:43pm

पढने लगे तो डूब गए गर्क-ए-दीद में 
आँखें नहीं वो इश्क की ताज़ा किताब है ........ वाह ! बहुत बढ़िया सर जी ! भा गया आपका रूमानी अंदाज ! बहुत बढ़िया //निकलो न बेनकाब ज़माना ख़राब है// इसकी जगह कुछ और लिख लेते तो और मज़ा आता पढ़ने में !

Comment by Sonam Saini on November 6, 2012 at 12:38pm

nice ghazal sandeep ji

Comment by नादिर ख़ान on November 5, 2012 at 6:19pm

पढने लगे तो डूब गए गर्क-ए-दीद में 
आँखें नहीं वो इश्क की ताज़ा किताब है 

उनसे मिली निगाह तो कहने लगी सुनो
आखों से "दीप" पी लो पुरानी शराब है

 

वाह क्या कहने उम्दा गज़ल ।

Comment by लतीफ़ ख़ान on November 5, 2012 at 3:22pm

श्री संदीपजी , ग़ज़ल के लिए बधाई ..अशआर उम्दा हैं |एक मशविरा है...उर्दू शायरी में प्रेयषी के लिए स्त्रीलिंग का प्रयोग नहीं किया जाता आप का मक्ता यूं होना चाहिए ....उन से मिली निगाह तो कहने लगे सुनो

Comment by रविकर on November 5, 2012 at 10:53am

आभार भाई संदीप जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
9 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service