For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपने दुःख से नहीं दुसरे के सुखसे दुखी

 

कर्ण और राम दो मित्र थे l राम एक व्यापारी बन गया लेकिन कर्ण अभी भी बेरोजगार था जिसकी वजह से उसकी घर की हालत ठीक नहीं थी l समय समय पर राम भी अपने मित्र की मदद कर देता था कुछ समय तक ऐसे ही चलता रहा l और एक दिन कर्ण को एक अच्छी नौकरी मिल गई जिस कारण घर में किसी वस्तु की कमी नही रह गई थी और धीरे धीरे धन की समस्या भी समाप्त होने लगी थी l इस कारण अब वह अपनी जिंदगी सही से और शांति की जिन्दगी जी रहा था l  व्यापार मैं व्यस्त होने की वजह से राम और कर्ण एक दुसरे से मिल नहीं पाए थे l एक दिन राम अपने मित्र से मिलने चला गया और लेकिन उसके रहन सहन को देखकर हस्तप्रभ रह गया की कहाँ वह गरीब सा कर्ण और कहाँ आज उसका हँसता खेलता परिवार है l  कर्ण ने अच्छे से उसका स्वागत किया और उसको आश्वासन दिया की अगर उसे किसी प्रकार से उसकी जरुरत पड़े तो उसे याद करें वह हर तरह से उसकी मदद करने को तैयार रहेगा l उसके बाद राम अपने घर चल गया लेकिन कहीं न कहीं उसके मन में कुछ कसक रह गई की जो कर्ण सदा उसे मदद की आश रखता था आज वो अपने आप को उससे कहीं अधिक सम्रिधिशाली और सुखी समझता है l अत: उसको उसकी ख़ुशी देखि न गई और अपने दयनीय स्थिति को भुला उसने कर्ण को अपने से ज्यादा दयनीय स्थिति में पहुँचने की ठान ली l

एक दिन मौका पाकर उसने कर्ण के घर में आग लगा दी जिसमे उसका घर संसार उजड़ गया और इस आग की झपटे में उसका एकलौता लड़का आ गया इस सदमे को कर्ण की पत्नी सह नहीं सकी और वो गंभीर बीमारी का शिकार हो गई कर्ण अक्सर कहा करता था की अगर उसने कहीं स्वर्ग देखा है तो वह उसके घर में ही जहाँ उसकी सुंदर सुशील और धर्मपरायण पत्नी है और एक आज्ञाकारी और प्यारा सा पुत्र है l आज धरती का सबसे अभागा पुरुष मान रहा था लेकिन भविष्य किसने देखा है जिसे राम ने अपने मित्र के घर में आग लगाई थी आज व्यापार से तो पहले ही दयनीय स्थिति से गुजर रहा था कुछ ही दिनों बाद उसके बड़ी पुत्र वधु का देहांत हो गया और बेटी की जिस व्यक्ति से शादी हुई थी उसने दहेज़ के लालच में उसे छोड़ दिया राम ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उस लोभी पुरुष को समझाने में नाकामयाब रहा अब अपने मित्र से भी कोई मदद नहीं मांग सकता था अत: अब पछताने के अलावा उसके पास कुछ नहीं बचा खुद तो नरक में जी ही रहा था लेकिन उसने तो अपने मित्र की जिंदगी बर्बाद कर दी l

जब कर्ण का हँसता खेलता परिवार था तो उसे स्वर्ग सा अनुभव होता था घर में शांति और मन भी शांत था धार्मिक प्रवर्ती होने के कारण मन में प्रभु का ध्यान था l दूसरी और मह्त्वकंशी होने के और दुसरे की ख़ुशी को ना देखने की वजह से राम सदा दुखी और नरक सा जीवन व्यतीत कर रहा था और अपने मित्र के साथ दुर्व्यहार करने के बाद उसने अपने दुःख की सीमा ही लाँग दी आज नरक से भी बुरी जिंदगी व्यतीत कर रहा है हर पल मृत्यु की मांग करता है और एक मृत्यु है की पास आने के बजाये दूर और दूर होती जा रही है शायद यही उसके पापो का फल है l किसी ने सही ही कहा कि "आज का इन्सान अपने दुःख से इतना दुखी नहीं जितना दुसरे के सुख से दुखी है"

Views: 534

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shubhranshu Pandey on December 14, 2012 at 9:18am

आदरणीय, लगता है कि दोस्त की हालत ने आपको कुछ ज्यादा ही विचलित कर दिया है. ज्यादा परेशान न हों और पाठकों के विचारों पर एक ही वाक्य चिपकाने की जगह आप समुचित विचार देते...

Comment by PHOOL SINGH on December 12, 2012 at 3:18pm

केसरी  जी नमस्कार....

आपको मेरी ये कहानी पसंद आई आपका बहुत बहुत आभार.......

फूल सिंह

Comment by PHOOL SINGH on December 12, 2012 at 3:17pm

पाण्डेय जी नमस्कार....

ये मेरे दोस्त की अपनी आपबीती है जो मैंने कहानी के जरिये से व्यक्त की है

और आपको मेरी ये कहानी पसंद आई आपका बहुत बहुत आभार.......

फूल सिंह

Comment by PHOOL SINGH on December 12, 2012 at 3:15pm

प्राची जी नमस्कार....

ये मेरे दोस्त की अपनी आपबीती है जो मैंने कहानी के जरिये से व्यक्त की है

और आपको मेरी ये कहानी पसंद आई आपका बहुत बहुत आभार.......

फूल सिंह

Comment by Shubhranshu Pandey on December 12, 2012 at 1:24pm

आदरणीय

तथ्य के ताने बाने को और सघन बुनने से प्रवाह में निरंतरता आयेगी...

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 7, 2012 at 9:26am

सत्य है, जैसा हम बाहर देते है, प्रकृति हमें उसे कई गुना करके लौटाती है... फिर चाहे वो सद्भाव जनित सुकर्म हों या फिर दुर्भाव से ग्रसित पाप कर्म...

इस नीति उपदेशक लघुकथा के किये बधाई.

Comment by वीनस केसरी on December 7, 2012 at 3:14am

हितोपदेश कथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
3 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
3 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service