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स्वप्न सत्य सा लखता जाऊँ...

तुमको जब मैं संग न पाऊँ
व्याकुल मन कैसे समझाऊँ 
बेकल हो यह सोच रहा कैसे
तुझसे तुझको मैं चुराऊँ

मृदु भावों से कलम भरी है 
प्रीत भरी मन की नगरी है
धन वैभव प्रिय पास न मेरे 
शब्द बना मोती बरसाऊँ

मिलो जो तुम तो खो जाऊं मैं 
जुदा स्वयं से हो जाऊँ मैं 
स्वप्न अगर ये स्वप्न ही सही 
स्वप्न सत्य सा लखता जाऊँ

आठों पहर साथ हो तेरा 
जीवन का हर सांझ सवेरा 
नाम तेरे कर दूँ, सौरभ बन 
श्वांस में तेरी मैं घुल जाऊँ ll—प्रवीण कुमार ‘पर्व’

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Comment by praveen on December 10, 2012 at 12:50am

Er. Ganesh Jee "Bagi" सर सादर आभार आपका..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 9, 2012 at 9:35am

//तुमको जब मैं संग न पाऊँ
व्याकुल मन कैसे समझाऊँ 
बेकल हो यह सोच रहा है
तुम्हे तुम्ही से क्यों न चुराऊं//

वाह वाह शानदार अभिव्यक्ति |

मिलो अगर तो मैं खो जाऊं
जुदा स्वयं से मैं हो जाऊँ

स्वप्न अगर तो स्वप्न सही ये
स्वप्न सत्य सा लखता जाऊँ

वाह , बहुत ही सुन्दर भाव , बधाई हो |

Comment by praveen on December 8, 2012 at 11:19pm

seema agrawal दीदी हार्दिक आभार आपका..

Comment by seema agrawal on December 8, 2012 at 7:34pm

सुन्दर प्रभावशाली गीत प्रवीण जी   

मिलो जो तुम तो खो जाऊं मैं 
जुदा स्वयं से हो जाऊँ मैं 
स्वप्न अगर ये स्वप्न ही सही 
स्वप्न सत्य सा लखता जाऊँ...पंक्तियों के लिए विशेष बधाई 

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