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इशरत गंज उस शहर में देह बाज़ार का नाम था और लैला उस बाज़ार का एक हिस्सा थी । बाज़ार से सटे चौराहे पर मोती लाला की प्रसिद्ध किराना दुकान ।  इशरत गंज के अक्सर सभी घरों में मोती लाला की दुकान से ही सामान जाया करता था | लैला भी एक महीने का राशन एक साथ मंगवा लिया करती थी | आज भी राशन आया था । लैला बिल से एक-एक सामान मिलाती जा रही थी | पिछली बार लाला दो किलो नमक सामान के साथ बांधना भूल गया था । बार-बार कहने पर भी नहीं माना । लाला की भूल लैला पर भारी पड़ी थी | 

पर इस बार लाला की भूल उस पर ही भारी पड़ने वाली थी, वह पांच लीटर सरसों के तेल का हिसाब ही जोड़ना भूल गया | लैला ने सोच लिया, पिछली बार जैसा लाला ने उसके साथ किया था, इस बार वो भी उसका बदला ले लेगी । तेल का हिसाब तो कत्तई नहीं देना है । दूसरे ही पल सोचने लगी, "नहीं-नहीं, यह ठीक नहीं होगा, बेचारे लाला का नुकसान हो जाएगा । यह तो पाप है ना.. . . पर, नुकसान तो उसका भी हुआ था । उस समय तो लाला ने बिल्कुल नहीं सोचा था, फिर वो ही क्यों सोचे ? "जैसे को तैसा" करने में कोई पाप नहीं..",   लैला देर तक इस अंतरद्वंद्व में उलझी रही |

"लाला, यह देखो अपना बिल, तुमने कल पांच लीटर सरसों के तेल का हिसाब ही नहीं जोड़ा था, कितना हुआ ले लो |" 
मोती लाला आश्चर्य से लैला को देख रहा था । पिछले महीने की नमक वाली बात उसके मस्तिष्क में कौध गई |  
"देख क्या रहे हो लाला, यह पैसा काट लो.. . . तुम्हारे पास नमक हो ना हो, मेरे पास नमक अभी भी है । मैं जिस्म का सौदा जरुर करती हूँ, लाला.. . ईमान का नहीं |"
 

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 11, 2012 at 2:28pm

आदरणीया विनीता शुक्ला जी, लघुकथा के मूलभुत भावों को आपने समझा और सराहा, मुझे अत्यधिक ख़ुशी हुई , बहुत बहुत आभार |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 11, 2012 at 2:26pm

आदरणीय विजय निकोर साहब,आपका आशीर्वाद मिला, मैं धन्य हुआ, बहुत बहुत आभार आपका |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 11, 2012 at 2:24pm

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय दवे साहब ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 11, 2012 at 2:22pm

आदरणीय सौरभ भईया, आपको लघुकथा पसंद आयी, मेरा लेखन सफल हुआ, आपकी सराहना मेरे लिए पारितोषिक समान है, आपका आशीर्वाद मुझे और इस लघु कथा को मिला, आपका बहुत बहुत आभार, स्नेह और आशीर्वाद बना रहे | 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 11, 2012 at 2:19pm

उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया शन्नो दी ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 11, 2012 at 1:43pm

लघुकथाओं में आप कमाल करते हैं बागी जी। आपने अपनी एक अलग भाषा और शैली विकसित कर ली है। अब विषय में थोड़ा और विविधता लाएँ तो कहर ढा देंगे आप।

Comment by Dr.Ajay Khare on December 11, 2012 at 1:24pm

bagi ji aapki laghu katha nisandeh marmik he kintu me poori tarah se laila se sahmat nahi hu kyoki jo apna atsamman jamir pese ki khatir bach de bo imandhar ki baat kare baat kuch hajam nahi hu


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 11, 2012 at 1:24pm

आदरणीय जवाहर लाल जी, आप सब की सराहना और माँ सरस्वती की कृपा है जो मैं कुछ लिख पाता हूँ , इस लघु कथा को सराहने हेतु बहुत बहुत आभार |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 11, 2012 at 1:23pm

आदरणीय डॉ बाली साहब, आप सब की सराहना और माँ सरस्वती की कृपा है जो मैं कुछ लिख पाता हूँ , इस लघु कथा को सराहने हेतु बहुत बहुत आभार |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 11, 2012 at 1:13pm

आभार जगदानंद झा जी |

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