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हे देह लता बन शरद घटा

पर देख जरा यह ध्‍यान रहे

पथ है अपार भीषण तुषार

हे पथिक पंथ का ज्ञान रहे

मन भेद भरे नित चरण गहे

तन मूल धूल यह भान रहे

यौवन सम्‍हार छलना विचार

निर्लिप्‍त दीप्‍त बस प्राण रहे

 

यह नृत्‍य गान भींगा विहान

छाया प्रमाण खम ठोंक कहे

'गढ़ नेह-मोह रच दूं विछोह

जो लेश मात्र अंजान रहे'

 

तज दर्प दंभ हैं ये भुजंग

आभा अनूप नित तूम रहे

दस द्वार ज्‍वार करता विहार

बस एक प्राण मुदमान रहे

 

तब हे विशेष धर श्‍याम वेष

क्‍यों हाय ! वृथा हठ ठान रहे

धर रम्‍य रूप हो जा अरूप

अज पंथ परम प्रस्‍थान रहे

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on December 13, 2012 at 1:37pm

राजेश सर सुन्दर गीत रचा है आपने बधाई स्वीकारें

Comment by MAHIMA SHREE on December 13, 2012 at 10:56am

हे देह लता बन शरद घटा

पर देख जरा यह ध्‍यान रहे

पथ है अपार भीषण तुषार

हे पथिक पंथ का ज्ञान रहे....

अति सुंदर !!! बहूत  -2 बधाई आपको

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 13, 2012 at 7:40am

बहुत ही सुन्दर कविता ! बधाई स्वीकारें!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 12, 2012 at 8:17pm

//

यह नृत्‍य गान भींगा विहान

छाया प्रमाण खम ठोंक कहे

'गढ़ नेह-मोह रच दूं विछोह

जो लेश मात्र अंजान रहे'///

बहुत ही खुबसूरत रचना , अच्छी लगी, बधाई स्वीकार करें |

Comment by ajay sharma on December 12, 2012 at 7:28pm

it is like flowing stream , making so many enchanting voices, rythems, tunes ( as chhandas echoing like this )  reflecting a inner urge  of the "mana" & like soul incorporating with it .. wah wah wah wah  

हे देह लता बन शरद घटा , पर देख जरा यह ध्‍यान रहे ,पथ है अपार भीषण तुषार , हे पथिक पंथ का ज्ञान रहे

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