टूटता ये दिल रहा है जिंदगी भर,
दर्द भी हासिल रहा है जिंदगी भर,
अधमरा हर बार जिन्दा छोड़ देना,
मारता तिल-2 रहा है जिंदगी भर,
देखकर मुझको निगाहें फेर लेना,
दौर ये मुश्किल रहा है जिंदगी भर,
बेवजह मुझको मिली बदनामियाँ हैं,
जबकि वो कातिल रहा है जिंदगी भर,
नींद से मैं जाग जाता हूँ अचानक,
खौफ यूँ शामिल रहा है जिंदगी भर,
चाह है मैं चाहता उसको रहूँ बस,
इक यही आदिल रहा है जिंदगी भर।
Comment
धन्यवाद आदरणीय श्याम जी
आभार संदीप भाई राह दिखाने एवं सुझाव देने हेतु.
सुन्दर भावाभिव्यक्ति अरुण जी! ग़ज़ल सध रही है!
सुन्दर भावाभिव्यक्ति अरुण जी! ग़ज़ल सध रही है!
अधमरा हर बार जिन्दा छोड़ देना,
मारता तिल-2 रहा है जिंदगी भर, - > बेहद पसंद आया बहरहाल पहले मिसरे में बात कुछ बन नहीं रही है यूँ कर के देखें कि 'अधमरा हर बार मुझको छोड़ देना' . चौथे शे'र के पहले मिसरे में बह्र छूट रही है! बेवजह का वज़न २१२ न हो कर २२१ होता है! फिर भी कुल मिला कर आपकी यह ग़ज़ल अपने धरातल पर मुझे पसंद आई! हार्दिक बधाई आपको.
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