क्रोध
अशांत करता है,परेशान करता है,
पटरी पर चल रही जिंदगी को,
पटरी से उतार देता है, क्रोध ।
बुद्धि नष्ट करता है,ज्ञानहीन बनाता है,
संयम को नष्ट करके,
गरिमा को खत्म करता है, क्रोध ।
बना काम बिगाड़ता है,संबंध खराब करता है,
वर्षों की मेहनत को क्षण में बरबाद करता है,
प्रेम में जहर भर देता है, क्रोध ।
हृदय जलाता है,रोग पैदा करता है,
तनाव बनकर शरीर नष्ट करता है,
खुशी और सुख का दुश्मन है, क्रोध ।
अकेलापन देता है,अभिमान उत्पन्न करता है,
आँखों में काली पट्टी बाँध देता है,
विवेक का दुश्मन है ,क्रोध ।
क्षण भर में आता है,कई घंटे रहता है,
पूरे दिन की ऊर्जा को खा जाता है,
मन को दुखी कर देता है ,क्रोध ।
लोभ,लालच से उत्पन्न होता है,
मनुष्य को तेजहीन बनाता है,
लोकप्रियता छीनता है, क्रोध ।
Comment
क्रोध के दुर्गुणों को बखूबी गिनाया अखिलेश जी
पर क्या इसमे काव्य तत्व हैं ?
मित्र क्रोध की सुन्दर परिभाषा व्यक्त की है बधाई स्वीकारें
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