For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रे मन करना आज सृजन वो / डॉ. प्राची

रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर जो पार करा दे l

निश्छल प्रण से, शून्य स्मरण से
मूरत गढ़ना मृदु सिंचन से,
भाव महक हो चन्दन चन्दन
जो सोया चैतन्य जगा दे l

रे मन करना आज सृजन वो

भव सागर जो पार करा दे l

प्रबल अवनि हो, चकमक मणि हो
बधिर श्रव्य वह निर्मल ध्वनि हो,
शब्द कंप का निहित अर्थ हर
मन वीणा के तार गुंजा दे l

रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर जो पार करा दे l

हृदय नभश्वर मापे अम्बर
अमिय पिए, कर मंथित सागर,
अमर सुधा रस छलक छलक कर
तृप्त करे, मन-प्राण भिगा दे l

रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर जो पार करा दे l

निज सम्मोहन द्विजता बंधन
विलय करे हो ऐसा वंदन,
सत्य कटु और मधुर कल्पना
विलग! सेतु बन, मिलन करा दे l

रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर जो पार करा दे l

 
*सस्वर गायन गणेश जी "बागी"

इस गीत का ऑडियो फाइल (MP3) यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करें ..

Views: 1584

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 13, 2013 at 2:51pm

डॉ.प्राची, आपकी इस गीत-रचना की शुभता और आपके सद्प्रयास पर मैं जितना कहूँ कम होगा. मातृ-सत्ता और इसके भाव-स्वरूप की ऐसी विशद प्रस्तुति कम ही दिखती है, आदरणीया. सूक्ष्म की प्रतीति को शब्दरूप देना इतना सरल नहीं है जिसे आपने रचना के प्रथम दो अंतरों में दिया है.

निश्छल प्रण से, शून्य स्मरण से
मूरत गणना मृदु सिंचन से,
भाव महक हो चन्दन चन्दन
जो सोया चैतन्य जगा दे .. 

अद्भुत ! अद्भुत !!  दृश्य और श्रव्य पर चर्चाएँ होती रहती हैं. घ्राण-अनुभूति का इतना सटीक वर्णन ! इतना दृढ़ विश्वास !

और.....

प्रबल अवनि हो, चकमक मणि हो
बघिर श्रव्य वह निर्मल ध्वनि हो,
शब्द कंप का निहित अर्थ हर
मन वीणा के तार गुंजा दे l

शब्द कंप का निहित अर्थ हर .. क्या ही अनुभूति है ! वाह ! हर लेना हर वह अर्थ जो कंपायमान शब्दों का परावर्तन हो. अद्भुत, आदरणीया, अद्भुत ! आपकी अनुभूति को नमन है.

रचना के प्रवाह और इसकी गेयता पर मन मुग्ध है. शैली तो वह है कि शिल्प की दृष्टि से यह गीत त्रिभंगी छंद के समकक्ष जा बैठे ! आपकी अबतक की साझा हुई रचनाओं में इसे सर्वश्रेष्ठ रचना कहूँ तो आश्चर्य न हो, आदरणीया.

एक बात : वैसे प्रयुक्त शब्द बधिर है न ? और नभ-स्वर शब्द है या नभीश्वर ? यह स्पष्ट नहीं हुआ. मैं अपने हिसाब से बधिर और नभ-स्वर शब्द स्वीकार कर वाचन कर गया हूँ.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 13, 2013 at 12:25pm

रचना पर आपकी सराहना भरा अनुमोदन प्राप्त कर मन हर्षित है, इस हेतु आभार आ. अन्वेषा अन्जुश्री जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 13, 2013 at 12:24pm

संदीप जी, आपको इस रचना निहित भाव पसंद आये, इस हेतु आपका हार्दिक आभार 

Comment by Anwesha Anjushree on January 13, 2013 at 10:20am

अपने आप से उम्मीद, खुद को निखारने की सोच, सुंदर रचना।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 11, 2013 at 3:59pm
आदरणीया डॉ प्राची जी , सादर प्रणाम 
बेहद भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी 

रे मन करना आज सृजन वो

जो भव सागर पार करा दे l

बहुत बहुत बधाई आपको 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 11, 2013 at 3:40pm

यह सृजन आपको सार्थक लगा, यह जान लेखन कर को प्रोत्साहन मिला है आदरणीय प्रदीप कुमार कुशवाहा जी, सादर आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 11, 2013 at 3:37pm

इस गीत पर आपके नम्र अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय अशोक रक्ताले जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 11, 2013 at 3:36pm

रचना को सराह उत्साहवर्धन करने हेतु आभार आ. विजय निकोर जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 11, 2013 at 3:36pm

भावाभिव्यक्ति पर आपके अनुमोदन हेतु आभारी हूँ आ. लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 11, 2013 at 3:35pm

इस रचना के शब्दों और भावों को आपने सराहा इस हेतु आपका आभार प्रिय पियूष जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
19 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
21 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
21 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
21 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service