For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ध्वजा को झुका दो कि क्रंदित है जन गण//डॉ प्राची

ध्वजा को झुका दो कि क्रंदित है जन गण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

 

गुलशन उजड़ने से

सहमीं हैं कलियाँ,

पंखों को सिमटाये

दुबकी तितलियाँ,

कर्कश सा चिल्लाये भंवरा क्यों हर क्षण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

 

बुझी दीप की लौ

है फैला अँधेरा,

प्रज्ञा को तम के

कलुष नें है घेरा,

खिले फिर से रश्मि करे तम का भक्षण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

 

कैसे हुआ वक़्त

इतना विषैला,

क्यों कर हुआ है

मनस इतना मैला,

कैसे करें आज कलियों का रक्षण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

 

ध्वजा को झुका दो कि क्रंदित है जन गण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

Views: 825

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 10, 2013 at 4:31pm

बुझी दीप की लौ

है फैला अँधेरा,

प्रज्ञा को तम के

कलुष नें है घेरा,

खिले फिर से रश्मि

करे तम का भक्षण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

आदरणीय प्राची जी, 

सादर 

सहमत 

बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 3, 2013 at 11:59am

आपकी शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोर जी 

Comment by vijay nikore on January 3, 2013 at 2:33am

आदरणीया प्राची जी,

कैसे हुआ वक़्त

इतना विषैला,

क्यों कर हुआ है

मनस इतना मैला,

कैसे करें आज

कलियों का रक्षण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण

यह पंक्तियाँ कितना-कुछ कह रही हैं!

काश, हर कोई आपकी इस कविता को पढ़े।

साधुवाद।

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 2, 2013 at 4:48pm

रचना निहित संवेदना को मान देने के लिए आभार प्रिय राजेश कुमार झा जी 

Comment by राजेश 'मृदु' on January 2, 2013 at 4:18pm

आपकी संवेदना में हमारा भी सुर मिले और एक ऐसे समाज की रचना हो जहां फिर ऐसा वक्‍त ना आए । बढि़या चित्रण के लिए हार्दिक शुभकामनाएं, बधाई नहीं दूंगा क्‍योंकि यह आपकी संवेदना का अपमान होगा, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 1, 2013 at 1:20pm

हार्दिक आभार प्रिय महिमा जी 

यह रचना आपके ह्रदय को छू सकी इसलिए आभारी हूँ आपकी , 

नववर्ष आपके लिए भी बहुत मंगलमय हो. 

सस्नेह 

Comment by MAHIMA SHREE on January 1, 2013 at 11:32am

कैसे हुआ वक़्त

इतना विषैला,

क्यों कर हुआ है

मनस इतना मैला,

कैसे करें आज

कलियों का रक्षण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम....

आदरणीया प्राची जी ..

ह्रदय को झकझोर देनेवाली रचना .. आशा है नववर्ष में समाज में सकरात्मक बदलाव आये ..सोच बदलें .

नववर्ष की आपको सपरिवार बधाइयाँ और शुभकामनाएं


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 31, 2012 at 8:07pm

आदरणीय सौरभ जी 

दामिनी की मौत नें झकझोर दिया है, पूरा देश एक सुर में समाधान चाहता है.

समयाभाव के बावजूद भी आप इस रचना को वक़्त दे पाए और अपनी शुभकामनाएं संप्रेषित कर सके, इस हेतु आपकी ह्रदय से आभारी हूँ. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 31, 2012 at 8:02pm

आदरणीय संजीव जी,

सादर आभार, इस अभिव्यक्ति निहित संवेदना के साथ अपनी बुलंद आवाज में इसे संबल प्रदान करने के लिए. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 31, 2012 at 6:49pm

कैसे हुआ वक़्त
इतना विषैला,
क्यों कर हुआ है
मनस इतना मैला,
कैसे करें आज
कलियों का रक्षण,

चलचित्र सा घूम गया वर्तमान. बहुत ही प्रभावोत्पादक पंक्तियाँ हैं, डॉ.प्राची.

समयाभाव है, वर्ना इतनी अच्छी रचना से वंचित रहना किसे अच्छा लगता है.  आपको बार-बार बधाई, आदरणीया.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service