जाने कौन कहां से आकर
मुझको कुछ कर जाता है
मेरी गहरी रात चुराकर
तारों से भर जाता है
जाने कौन.........
देख नहीं मैं पाउं उसको
दबे पांव वह आता है
और न जाने कितने सपने
आंखों में बो जाता है
जाने कौन.......
एक दिन उसको चांद ने देखा
झरी लाज से उसकी रेखा
मारा-मारा फिरता है अब
दूर खड़ा घबराता है
जाने कौन....
चैताली वो रात थी भोली
नीम नजर भर नीम थी डोली
वही तराने सावन-भादो
उमड़-घुमड़ कर गाता है
जाने कौन....
ढूंढ रहा हूं उसी निशां को
पूछ थका हूं सारी फिजां को
तुम्ही बता दो साथी मेरे
कौन मुझे भरमाता है
जाने कौन .........
राजेश कुमार झा
(मौलिक रचना)
Comment
आदरणीय राजेश झाजी, एक अच्छी रचना थोड़ी सी कसर के कारण बहुत अच्छी रचना बनते-बनते रह गयी कहूँ तो कृपया अन्यथा न लेंगे. इस गीत का भाव और कथ्य इतना सुन्दर है कि मन विभोर हो जाता है. उसी अनुरूप इसे बाँधना था.
आपकी अबतक प्रस्तुत हुई रचनाओं ने मेरी एक पाठक के तौर पर आपसे अपेक्षाएँ बढ़ा दी हैं तो मुख्य कारण आप द्वारा हुआ अबतक का उन्नत प्रयास ही है. सादर..
आप सबका सादर आभार
आदरणीय राजेश झा जी, रचना अच्छी लगी, बधाई स्वीकारें ।
kahi dur ja din dhal jaay......yeh geet yaad aa gaya....Man ko bhaya aapki kavita...
ह्रदय में प्रीत की दस्तक को १६-१४, १६-१४ मात्राओं की पंक्तियों में खूबसूरती से बाँधा है.कहीं कहीं टंकण त्रुटियाँ हैं, उन्हें दूर कर लें.
हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर आ. राजेश झा जी
aadarniy rajesh jii
saadar
sundar rachna badhai
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