एक फसली जमीन को
तीन फसली करने का हुनर.....
धर्म के अंकुश तले
आकुल उड़ान की कला......
अभिशप्त़ कामनाओं को
ममी बनाने का शिल्प.......
कहां जानता है
एक अदना सा आदमी ?
वह जानता है
ताप, पसीना, थकान
विषाद, उत्पीड़न
और उससे उपजी
तटस्थता
जिसको उसने नहीं चुना,
वह जानता है
टीस, चुभन, दर्द, मरण
और इन्हें समेटकर
हो जाता है एकदिन
छंदमय, मनोमय
चाहिए सहारा उसे
वृषभ कंधों,
सबल हाथों का
ताकि
वह भी हो सके
छंदमुक्त, निर्बंध
अरुप, आकंठ
राजेश कुमार झा (मौलिक रचना)
Comment
जनाब राजेश कुमार झा जी ,,, एक अदना सा आदमी के लिए उतनी ही सशक्त रचना ,,,कोतिस:हार्दिक बधाईयाँ ,,, कोई मकसद नहीं फिर भी ज़िंदा है आदमी ,,, बस इसी इक बात पर शर्मिन्दा है आदमी ,,,,, या यूं कह लीजिये ,,,,क्या जाने किस उम्मीद पर जीता है आदमी ,,हंस हंस के ज़हरे-ज़िंदगी पीता है आदमी !! मेरे दिल के जज़्बात आप की रचना में झलकते हैं ,,,
''टीस, चुभन, दर्द, मरण''....बढ़िया रचना...
आप सब का हार्दिक आभार, जब रचना लिख रहा था तो मुझे सबकुछ बड़ा बेतुका लग रहा था पर मन ने कहा आगे बढ़ तो मैं जैसा कि हमेशा करता रहा हूं, अपने मन की ही सुनी, सादर
बहुत दर्द भरी अभिव्यक्ति ......
उत्तम अति उत्तम महोदय
आदरणीय राजेश जी
सादर
शानदार प्रस्तुति
बधाई.
आप सबकी स्नेहपूर्ण उपस्थिति एवं प्रतिक्रिया मुझे लगातार मांजती रहती है इसी कारण हर रचना पर आपकी उपस्थिति की कामना भी रहती है और आप सबने मुझे कभी निराश भी नहीं किया । स्नेह कृपया यूं ही बनाए रखें,सादर
आदरणीय प्राची जी दो शब्द जो बहुअर्थी रूप में प्रयुक्त हुए हैं वे इस प्रकार हैं :
1. छंदमय: परम तत्व में मिल जाना (जो हमेशा छंदमय यानि सटीक अनुशासन में होता है)/घुटन भरे वातावरण या उसको तोड़ ना पाने की विवशता/अकुशलता 2. छंदमुक्त : घुटन से मुक्ति / बंधनों से मुक्त हो जाना या उस कुशलता को प्राप्त कर लेना जिसमें जाले तोड़ने का गुण आ जाए । अर्थात् छंदमय एक ओर जहां मुक्ति का द्योतक है वहीं पार्थिव जगत में वह घुटन एवं विवशता का भी द्योतक है एवं छंदमुक्त इनसे परे वह आकाश है जिसे छूने हेतु आदमी हमेशा लालायित रहता है और जिसे पाकर वह अरूप एवं निर्बंध हो जाता है । आदरणीय सौरभ जी ने इसी तथ्य को रेखांकित किया है ''अकुशल का विवश हो बंध कर जीना और कौशल्य का उन्मुक्त और निर्बंध जीना'' । सादर
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