कलम की नॊंक सॆ
===========
फ़ांसी कॆ फन्दॊं कॊ हम,गर्दन का दान दिया करतॆ हैं,
गॊरी जैसॆ शैतानॊं कॊ भी,जीवन-दान दिया करतॆ हैं,
क्षमाशीलता का जब कॊई, अपमान किया करता है,
अंधा राजपूत भी तब, प्रत्यंचा तान लिया करता है,
भारत की पावन धरती नॆं, ऎसॆ कितनॆं बॆटॆ जायॆ हैं,
मातृ-भूमि कॆ चरणॊं मॆं, जिननॆ निजशीश चढ़ायॆ हैं,
दॆश की ख़ातिर ज़िन्दगी हवन मॆं, झॊंकतॆ रहॆ हैं झॊंकतॆ रहॆंगॆ !!
कलम की नॊंक सॆ आँधियॊं कॊ हम,रॊकतॆ रहॆ हैं रॊकतॆ रहॆंगॆ !!१!!
स्वाभिमान की रक्षा मॆं, महिलायॆं ज़ौहर कर जाती हैं,
आन नहीं जानॆं दॆतीं जलकर, ज्वाला मॆं मर जाती हैं,
याद करॊ पन्ना माँ जिस नॆं, दॆवासन कॊ हिला दिया,
राजकुँवर की मृत्यु-सॆज पर, निज बॆटॆ कॊ सुला दिया,
भारत की तॊ नारी भी, दुर्गा है रणचण्डी है, काली है,
तलवार उठा लॆ हाँथॊं मॆं, तॊ महारानी झांसी वाली है,
खाकर घास की रॊटी गर्व सॆ सीना, ठॊंकतॆ रहॆ हैं ठॊंकतॆ रहॆंगॆ !!
कलम की नॊंक सॆ हम आँधियॊं कॊ.........................
हम पूजा करतॆ मर्यादाऒं कॊ, आदर्शॊं कॊ यह सच है,
पर पीठ नहीं दिखलातॆ हम,संघर्षॊं कॊ यह भी सच है,
माना कि इस भूमि पर,मर्यादा पुरुषॊत्तम राम हुयॆ हैं,
रिपु-मर्दन परसुराम कॆ भी,इसी धरा पर संग्राम हुयॆ हैं,
अहंकार कॆ दानव जब भी,पौरुष कॊ ललकारा करतॆ हैं,
लंका मॆं घुस कर रघु वंशज, रावण कॊ मारा करतॆ हैं,
सत्य का साथ दॆ सदा हम असत्य कॊ,टॊकतॆ रहॆ हैं टॊकतॆ रहॆंगॆ !!
कलम की नॊंक सॆ हम आँधियॊं कॊ.....................
दॆश की एकता अखंडता कॊ, तॊड़नॆ मॆं लगॆ हैं बहुत,
शान्ति कॆ कलश कॊ आज, फॊड़नॆ मॆं लगॆ है बहुत,
दॆश की सरहदॊं कॊ तॊड़नॆ, मरॊड़नॆ मॆं लगॆ हैं बहुत,
भारत माँ का आज रक्त, निचॊड़नॆं मॆं लगॆ हैं बहुत,
न कॊई धर्म है उनका और,न कॊई ईमान है उनका,
भारत कॆ नमक कॆ ख़िलाफ़,गन्दा बयान है जिनका,
"राज" दॆश कॆ ख़िलाफ़ गद्दार कई, भॊंकतॆ रहॆ हैं भॊंकतॆ रहॆंगॆ !!
कलम की नॊंक सॆ हम आँधियॊं कॊ....................
कवि -"राज बुन्दॆली"
१०/०१/२०१३
Comment
Saurabh Pandey जी,,आदरणीय आपकॆ स्नेह को शत शत नमन,,,,,,,,,,,,
कवि धर्म निभाने के लिए आपका आभार, राज भाई.
स्वाभिमान की रक्षा मॆं,उन नॆं निज शीश चढ़ायॆ हैं, -- इस पंक्ति को भाषा व्याकरण की दृष्टि से देख लें.
Dr.Prachi Singh जी,,आदरणीया आपकॆ स्नेह को शत शत नमन,,,,,,,,,,,,
SANDEEP KUMAR PATEL जी,,आदरणीय आपकॆ स्नेह को शत शत नमन,,,,,,,,,,,,
PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA जी,,आदरणीय आपकॆ स्नेह को शत शत नमन,,,,,,,,,,,,
Anwesha Anjushree जी,,आदरणीया आपकॆ स्नेह को शत शत नमन,,,,,,,,,,,,
vijay nikore जी,,आदरणीय आपकॆ स्नेह को शत शत नमन,,,,,,,,,,,,
satish mapatpuri जी,,आदरणीय आपकॆ स्नेह को शत शत नमन,,,,,,,,,,,,
Laxman Prasad Ladiwala आदरणीय आपकॆ स्नेह को शत शत नमन,,,,,,,,,,,,
दॆश की ख़ातिर ज़िन्दगी हवन मॆं, झॊंकतॆ रहॆ हैं झॊंकतॆ रहॆंगॆ !
कलम की नॊंक सॆ आँधियॊं कॊ हम,रॊकतॆ रहॆ हैं रॊकतॆ रहॆंगॆ !!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online