For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक बच्चा था, अबोध, हमारे यहाँ की भाषा के उसे निरा कहते है| निरा अबोध बच्चा, अक्ल से कच्चा, दिल से सच्चा| एक दिन खेलते खेलते जाने कहाँ आ पहुचा, उसे नहीं पता था, उसने देखा कुछ लोग थे , अजीब दाड़ी टोपी लगाए, हँसते हुए, बांस की पंचटो के ढाँचे पर आटे की लेई से पतंगी कागज चिपकाते हुए| उसने देखा, कुछ बच्चे उस जैसे ही, निरे अबोध बच्चे, मदद कर रहे है अजीब दाड़ी टोपी वाले लोगे की, वो देखता रहा, बहुत देर तक देखता रहा, उसका दिल रंगीन कागजों में अटक गया था, वो चिपकाना चाहता था उस पतंगी कागज को, बांस की पंचटो के ढाँचे से, यकायक आगे बड गया, तभी किसी ने पूछा, "ये तुम हिंदू हो या मुस्लिम ??" बच्चा निरा अबोध था, उसे नहीं पता था क्या कहना चाहिए, फिर भी कुछ तो कहना था, उसने कहा, "मुस्लिम"| पता नहीं सामने वाले ने जवाब सुना या नहीं पर फिर  से पूछ लिया, "बेटा तुम्हारे पापा का क्या नाम है?" बच्चे को ये प्रश्न सहज लगा, उस में पट से कहा, " रौशन सिंह "| सभी ठहाका मार के हँस दिए| फिर उनमे से एक बोला, "चल भाग यहाँ से, नहीं तो तेरे पापा से शिकायत करेगें| बच्चा लौट आया, बच्चे का नाम मोहन था | कुछ दिनों बाद शहर में ताजिये निकले|

ठीक उसी वक्त आगे पीछे, उसी शहर में, उसी जगह के आसपास, एक और निरा अबोध बच्चा, अक्ल से कच्चा, दिल से सच्चा खेलते खेलते जाने कहाँ आ पहुचा, उसे नहीं पता था, उसने देखा कुछ लोग थे , अजीब दाड़ी टोपी लगाए, हँसते हुए, बांस की पंचटो के ढाँचे पर आटे की लेई से पतंगी कागज चिपकाते हुए| उसने देखा, कुछ बच्चे उस जैसे ही, निरे अबोध बच्चे, मदद कर रहे है अजीब दाड़ी टोपी वाले लोगे की, वो देखता रहा, बहुत देर तक देखता रहा, उसका दिल रंगीन कागजों में अटक गया था, वो चिपकाना चाहता था उस पतंगी कागज को, बांस की पंचटो के ढाँचे से, यकायक आगे बड गया, तभी किसी ने पूछा, "ये तुम हिंदू हो या मुस्लिम ??" बच्चा निरा अबोध था, उसे नहीं पता था क्या कहना चाहिए, फिर भी कुछ तो कहना था, उसने कहा, "हिंदू"|पता नहीं सामने वाले ने जवाब सुना या नहीं पर फिर  से पूछ लिया, "बेटा तुम्हारे पापा का क्या नाम है?" बच्चे को ये प्रश्न सहज लगा, उस में पट से कहा, "नूर महोम्मद"| सभी ठहाका मार के हँस दिए| फिर उनमे से एक बोला, "चल भाग यहाँ से, नहीं तो तेरे पापा से शिकायत करेगें| बच्चा लौट आया, बच्चे का नाम बिस्मिल्लाह था | कुछ दिनों बाद शहर में रावण दहन हुआ |

ठीक बीस साल बाद, उसी शहर में, उसी जगह के आसपास, दो दोस्त मिले, निरे और अबोध और  पहले ने दूसरे से पूछा, "सिगरेट लाया बिस्मिल्लाह??" दूसरे ने जवाब दिया " तू दारु लाया है मोहन?"

Views: 437

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमि तेष on January 14, 2013 at 10:28am

शुक्रिया .........सौरभ जी ........ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2013 at 12:19am

जिस संजीदा तथ्य पर आपकी लघुकथा विकसित हुई है, भाई अमितेष जी, इसे प्रस्तुत करने में भी उतनी ही संज़ीदग़ी बरतनी थी. फिर भी कथा में अंतर्निहित संप्रेषणीयता बहुत कुछ स्पष्ट करती जाती है. समाज में संज्ञाओं के पीछे अदृश्य पुछल्ले की तरह चिपकी तथ्यहीनता पर आपकी कथा खूब ठहाके लगाती है. ताज़िये और रावण-दहन के प्रतीकों पर आपने बहुत कुछ साझा किया है.

इस प्रयास पर हार्दिक बधाई और अनेकानेक शुभकामनाएँ.

Comment by अमि तेष on January 12, 2013 at 11:01pm

शुक्रिया प्राची जी ....... विचार करने के लिए .........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 12, 2013 at 2:16pm
समझ नहीं आ रहा कि इस लघु कथा पर क्या कहूं, बस ह्रदय कचुटाया सा है, और विस्मित सोच ही रही हूँ,कि कौन से सिरे कहाँ तक जाते हैं

इस अभिव्यक्ति के लिए बधाई अमितेश जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आपकी सहजता और सौम्यता सम्माननीय है।"
3 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
" "था, बस तुम्हारा नाम था" रदीफ़ रखते हुए। 😊"
4 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"मेरे प्रयास की सराहना के लिए बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
10 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आपकी सराहना और सुझाव दोनों समान रूप से स्वीकार्य है आदरणीय। स्नेहाशीष के लिए आभार।"
14 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"//टीस बढ़ती ही गयी, ज्यूँ ज्यूँ दवा लेता गयाउस दवा का नाम क्या था, बस तुम्हारा नाम था// बहुत ख़ूब…"
17 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
23 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, आपका कथन उचित है परंतु कई बार अनेंकों का भी प्रयोग किया जाता…"
25 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"सादर प्रणाम आदरणीय ! मेरी साधारण कहन को सोने के गहने पहना दिये आपने। मन प्रफ्फुलित हो गया आपका आशीष…"
28 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
31 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. भाई गजेंद्र जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
32 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, आपके सुझाव के लिए हार्दिक आभार। आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला। सादर।"
33 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय गजेन्द्र श्रोत्रिय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
37 minutes ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service