कोई सपना भटक रहा है मेरी आँखों में
पल पल चन्दन महक रहा है मेरी आँखों में
दरिया, नदिया, ताल नहर सब भीगे भीगे है
कब से बादल लहक रहा है मेरी आँखों में
पल भर बतियाता है फिर ओझल हो जाता हैं
किसका चेहरा झलक रहा है मेरी आँखों में
गालिब, की ग़ज़लों सी नाजुक एक कली को देख
कोई हिरना फुदक रहा है मेरी आँखों में
एक ग़ज़ल बातें करती है टुकड़ों में मुझसे
तन्हा मिसरा फटक रहा है मेरी आँखों…
ContinueAdded by अमि तेष on November 11, 2013 at 9:00pm — 9 Comments
सुनो,
तुम तो जानती ही हो ....
मेरी ग़ज़ल,
मेरी कविताओं ...
के हर अलफ़ाज़ को ...
और ये भी,
कि ये दुनियाँ कितनी रुखी है ...
ये जमाने भर तल्खी,
अक्सर घाव कर देती है,
मुझ पर ...
फिर तितलिया ..
वक्त के साथ साथ,
फीकी पड़ जाती है,
चुभते है नाश्तर बन के रंग...
और एक कसक लिए मैं,
जमाने के दरार वाले इस पहाड़ के पीछे,
करता हूँ तुम्हारा इन्तजार ..
तुम देखना,
एक दिन ये दुनियाँ,
ताजमहल के साथ भरभरा कर,
गिर…
Added by अमि तेष on June 11, 2013 at 3:11am — 15 Comments
इश्क में हो गये है शेर सब
शेरनी की गरज पर ढेर सब
है बनी शायरी अब फुन्तरू
आम से हो गये है बेर सब
हां कलम भी कभी हथियार थी
चुटकुला अब, समय का फेर सब
जे छपे, वे छपे, हम रह गये
चाटने में हुई है देर सब
खो गये मीर, ग़ालिब, मुसहफ़ी
लिख रहे है खुदी को जेर सब
~अमितेष
मौलिक व अप्रकाशित
फुन्तुरु - मजाक
मीर - मीर तक़ी 'मीर'
ग़ालिब - असद उल्लाह खां ग़ालिब
मुसहफ़ी - शैख़ गुलाम हम्दानी मुसहफ़ी
Added by अमि तेष on June 4, 2013 at 11:19pm — 10 Comments
यह तेरी अर्जी है
या फिर खुदगर्जी है
सिल ही देंगी गम को
सांसे भी दर्जी है
मैं तुम से रूठा हूँ
तुहमत ये फर्जी है
दिल मेरा है सोना
बहता गम बुर्जी है
गर्दिश, ग़ज़लें, गश्ती
यह मेरी मर्जी है
~अमितेष
("मौलिक व अप्रकाशित")
Added by अमि तेष on January 26, 2013 at 1:13pm — 9 Comments
एक बच्चा था, अबोध, हमारे यहाँ की भाषा के उसे निरा कहते है| निरा अबोध बच्चा, अक्ल से कच्चा, दिल से सच्चा| एक दिन खेलते खेलते जाने कहाँ आ पहुचा, उसे नहीं पता था, उसने देखा कुछ लोग थे , अजीब दाड़ी टोपी लगाए, हँसते हुए, बांस की पंचटो के ढाँचे पर आटे की लेई से पतंगी कागज चिपकाते हुए| उसने देखा, कुछ बच्चे उस जैसे ही, निरे अबोध बच्चे, मदद कर रहे है अजीब दाड़ी टोपी वाले लोगे की, वो देखता रहा, बहुत देर तक देखता रहा, उसका दिल रंगीन कागजों में अटक गया था, वो चिपकाना चाहता था उस पतंगी कागज को, बांस की…
ContinueAdded by अमि तेष on January 11, 2013 at 11:11pm — 4 Comments
तुम ने कहा,
तुम जी लोगी मेरे साथ हर हाल में,
मुझे शायद इसके लिये भी,
शुक्रिया अदा करना चाहिये तुम्हारा ......
पर क्या तुम जानती हो,
इस कमबख्त दुनियां में
जहां कोई किसी का सगा नहीं,
हालात कैसे हो सकते है....
बोलो जी पाओगी,
जब दुनियां भर के थपेड़े,
बिना दरबाजा खटखटाये,
हमारे कमरे में दाखिल होंगे......
बोलो जी पाओगी,
जब मेरी शायरी में,
तिलमिलाएगी भूख,
नीम से कडबे…
ContinueAdded by अमि तेष on January 3, 2013 at 2:58pm — 13 Comments
हाँ हमें कुछ शर्म करना चाहिये
या हमें अब डूब मरना चाहिये
देश क्यों बदला नहीं कुछ आज तक
देश को क्यों और धरना चाहिये
दर्द ही है जख्म की संवेदना
क्यों भला इससे उभरना चाहिये
रों रही है माँ बहन औ बेटियां
जिन्दगी इनकी सवरना…
ContinueAdded by अमि तेष on January 1, 2013 at 11:47am — 12 Comments
ठीक है, ठीक है, ठीक है
मूर्खता घाघ की लीक है
चाटना, काटना, बाँटना
लूट की नीच तकनीक है
झूट है न्याय की भावना
आ रही देश को हीक है
लाल है हुक्म के होंठ क्यों
खून है या रची पीक है
राज है तो हमें डर नहीं
सोच ये तंत्र की ज़ीक़ है
ज़ीक़ – तंग
~अमितेष
Added by अमि तेष on December 26, 2012 at 8:47pm — 10 Comments
खुद को जब खुद से बचाना सीखिये
आप तब गोली चलाना सीखिये
पीर को खंजर, बनाना सीखिये
गर्दनें गम की उड़ाना सीखिये
पी रहे है खून दुनिया का बड़ा
खून के इनको बहाना सीखिये
दाग ये काले, घिनौने है बड़े
दाग को जड़ से मिटाना सीखिये
चोट से, मरते नहीं है नाग जो
आग से इनको जलाना सीखिये
.…
Added by अमि तेष on December 23, 2012 at 9:30pm — 9 Comments
एक ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहा हूँ ...... गुरुजनों से अनुरोध है कृपया मार्गदर्शन किजिए
चांदनी आज फिर विदा होगी
रोशनी आज फिर फना होंगी
जब कभी रंग रोशनी होंगे
आपके हाथ में हिना होगी
दर्द दे आज फिर हमें मौला
दर्द की आज इन्तहा होगी
हो गया एक नज़्म का सौदा
शायरी देख कर खफा होगी
चूम लों आँख, सोख लों…
Added by अमि तेष on December 16, 2012 at 1:30pm — 9 Comments
रात से हमने दोस्ती कर ली
लोग कहते है, दिल्लगी कर ली
ये फ़िज़ा बहकी, हवा महकी सी
शाम ने तेरी मुख़बिरी कर ली
ये हिज़्र मेरे बस की बात नहीं
लो सजा अपनी मुलतवी कर ली
तेरा ख्याल ले के सोये थे
ख्वाब में हमनें रोशनी कर ली
जो इल्म आया महोब्बत का 'अमि'
आशिको ने शायरी कर ली ~अमि'अज़ीम'
Added by अमि तेष on May 28, 2011 at 12:13am — No Comments
जिन्दगीं हर घड़ी
एक नया अनुभव लाती है
पर मैं क्या करु मेरा हर नया अनुभव
मेरे हर पुराने अनुभव से
कुछ कड़वा है, कुछ फ़ीका है, कुछ खारा है
कुछ दुर ही सही
मैं उसके साथ चलता हूँ
कभी सभ्लता हूँ, कभी फ़िसलता हूँ
मैं उसे नहीं बांटता
ये ही मुझे रफ़्ता रफ़्ता बांट देता है
मेरी इस छोटी सी जिन्दगी को
जो मेरे लिये ही काफ़ी नही
दो आयामों में काट देता है
वह मेरा सबसे पुराना मित्र है
और सबसे बड़ा…
ContinueAdded by अमि तेष on May 26, 2011 at 6:42pm — No Comments
Added by अमि तेष on April 29, 2011 at 9:49am — No Comments
जो पत्थर दिल थे आँसू बहानें लगें हैं,
रु-ब-रु गर हो तो मुस्कुराने लगें हैं.
अज़ीब तर्ज है तकल्लुफ़ का फ़िज़ायों में,
छुपाते थे जो, सिलसिलें बतानें लगें हैं.
कल तलक मायूस थे जो ईद पर हम से,
अब मुखबरी मुहल्लें की सुनानें लगें हैं.…
Added by अमि तेष on April 21, 2011 at 1:30pm — 4 Comments
बैठा है, किसी नई हलचल का इंतजार है,
खुदगर्ज दिल को आज फ़िर किसी से प्यार है
पुरानी उलफ़तों की दुहाई अब नही देता,
खुमारी है नई, पर खौफ़ तो बरकरार है
हर ज़ख्म को वक्त ने कर दिया है बख्तरबंद,
कुछ दर्द के निशान आज भी यादगार है
परख लें कंही नकली न हो पैमानें का नशा
पोशीदा बातों का कोई और भी…
Added by अमि तेष on April 14, 2011 at 2:00pm — 4 Comments
Added by अमि तेष on April 8, 2011 at 2:00pm — 14 Comments
खुली आंखों से भी उसे सब ख्वाब लगता हैं
वो अंधेरें घर में बस एक चिराग लगता हैं
उसके वालिद भी एक कोरी किताब ही थे
वो भी अधूरी हसरतों का जवाव लगता हैं
जिसके माथे पर हर बक्त पसीना रहता हैं
वो खुद ही पाई पाई का हिसाब लगता हैं…
ContinueAdded by अमि तेष on April 3, 2011 at 4:00pm — 2 Comments
Added by अमि तेष on March 29, 2011 at 1:00pm — 4 Comments
Added by अमि तेष on March 26, 2011 at 12:51am — 2 Comments
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