हाँ हमें कुछ शर्म करना चाहिये
या हमें अब डूब मरना चाहिये
देश क्यों बदला नहीं कुछ आज तक
देश को क्यों और धरना चाहिये
दर्द ही है जख्म की संवेदना
क्यों भला इससे उभरना चाहिये
रों रही है माँ बहन औ बेटियां
जिन्दगी इनकी सवरना चाहिये
आ मिटा दें खौफ़ की परछाइयाँ
यार कुछ तो कर गुजरना चाहिये
~अमितेष
Comment
शुक्रिया अनन्त जी
मित्र अमितेष सुन्दर जोशीली ग़ज़ल कही है, आपकी सोंच सच हो यही मैं भी चाहता हूँ. बधाई स्वीकारें
शुक्रिया ............सीमा जी
बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है अमि तेष जी
आ मिटा दें खौफ़ की परछाइयाँ
यार कुछ तो कर गुजरना चाहिये...बिलकुल अब करने का समय ही है |
दर्द ही है जख्म की संवेदना
क्यों भला इससे उभरना चाहिये...मेरे विचार से यहाँ उबरना (मुक्ति पाना,किसी स्थिति से बाहर आना ) शब्द होना चाहिए था ...क्यों की आपने इस शब्द से पहले इससे शब्द का प्रयोग किया है इसलिए यह मेरा अनुमान है
shukriya Prachi jee........
आ मिटा दें खौफ़ की परछाइयाँ
यार कुछ तो कर गुजरना चाहिये ...बहुत बढ़िया भाव
उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
shukariya Vijay jee ......
भाव अच्छे लगे। बधाई।
विजय निकोर
आदरणीय सौरभ जी ........शुक्रिया.......धरना का अर्थ यहाँ picketing (Picketing is a form of protest in which people congregate outside a place of work or location where an event is taking place. Often, this is done in an attempt to dissuade others from going in, but it can also be done to draw public attention to a cause. Picketers normally endeavor to be non-violent.) से है .........
आ मिटा दें खौफ़ की परछाइयाँ
यार कुछ तो कर गुजरना चाहिये
वाह ! बहुत बढिया शेर हुआ है. आपके ग़ज़ल प्रयास को बधाइयाँ.
देश क्यों बदला नहीं कुछ आज तक
देश को क्यों और धरना चाहिये ..
इस शेर के मिसरा-सानी का क्या अर्थ हुआ भाईजी ? धरना शब्द का प्रयोग कुछ स्पष्ट नहीं हुआ.
बहरहाल, इस ग़ज़ल पर दाद कुबूल कीजिये.
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