इश्क में हो गये है शेर सब
शेरनी की गरज पर ढेर सब
है बनी शायरी अब फुन्तरू
आम से हो गये है बेर सब
हां कलम भी कभी हथियार थी
चुटकुला अब, समय का फेर सब
जे छपे, वे छपे, हम रह गये
चाटने में हुई है देर सब
खो गये मीर, ग़ालिब, मुसहफ़ी
लिख रहे है खुदी को जेर सब
~अमितेष
मौलिक व अप्रकाशित
फुन्तुरु - मजाक
मीर - मीर तक़ी 'मीर'
ग़ालिब - असद उल्लाह खां ग़ालिब
मुसहफ़ी - शैख़ गुलाम हम्दानी मुसहफ़ी
Comment
उर्दू शब्दों का अर्थ बताने से आपके बात हर पाठक तक पहुचती है ..और सीखने को भी मिलता है ..सादर बधाई के साथ
Abid ali mansoori jee, Shyam Narain Verma jee, coontee mukerji jee, संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' jee, MAHIMA SHREE jee, Saurabh Pandey jee, रविकर jee और वीनस केसरी भाई .......... आप सभी का शुक्रिया ..... सौरभ जी ..वीनस भाई मेंरे बड़े भाई जैसे है .....और मेंटर है ......उनकी हर बात मेरे लिए महत्वपूर्ण है .....
गजब---
अरे वाह !!
अमितेष भाई जी, क्या ग़ज़ब किया है आपने.. . ::-))))
इस मासूम मग़र निहायत चुलबुले तंज़ को बचा कर रखियेगा, आगे यह जवान हो कर ग़ज़ब ढाने वाला है.. .
दाद .. भरपूर दाद..
वीनस भाई के कहे में दम है, देखियेगा..
भाई जी अच्छी ग़ज़ल कही है और अशआर बहरो वज्न में दुरुस्त भी हैं मगर अपने जो अरकान चुना है वह लयात्मक और अनुमत्य है इस पर मुझे शंका है
अगर इसे २१२ / २१२ / २२१२ से बदल कर २१२२ / २१२२ / २१२ कर लें तो रचना विधान के अनुरूप हो जायेगी
आपकी सुविधा के लिए मतले पर एक सुझाव प्रस्तुत है देखें लयात्मकता कैसे कई गुना बढ़ गई है ....
इश्क में यू / तो हुए है शेर सब
शेरनी की इक गरज पर ढेर सब
इश्क में यू / तो हुए है / शेर सब
शेरनी की / इक गरज पर / ढेर सब
हा हा क्या बात है अमितेष जी .. बहुत ही बढ़िया!!
बढ़िया तन्जीदा लेखन.. बधाई हो अमितेष जी!
वाह ! क्या अंदाज़ है . मनोरंजक ./ सादर
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
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