सुनो,
तुम तो जानती ही हो ....
मेरी ग़ज़ल,
मेरी कविताओं ...
के हर अलफ़ाज़ को ...
और ये भी,
कि ये दुनियाँ कितनी रुखी है ...
ये जमाने भर तल्खी,
अक्सर घाव कर देती है,
मुझ पर ...
फिर तितलिया ..
वक्त के साथ साथ,
फीकी पड़ जाती है,
चुभते है नाश्तर बन के रंग...
और एक कसक लिए मैं,
जमाने के दरार वाले इस पहाड़ के पीछे,
करता हूँ तुम्हारा इन्तजार ..
तुम देखना,
एक दिन ये दुनियाँ,
ताजमहल के साथ भरभरा कर,
गिर पड़ेगी मेरे सीने पर ....
और मेरी आह,
उस दरार के रास्ते से,
उतर जायेगी तुम्हारे दिल में......
सुनो,
तुम तो जानती ही हो ....
मेरी ग़ज़ल,
मेरी कविताओं ...
के हर अलफ़ाज़ के बीच ...
एक खामोशी है ...
जिस पर फ़कत तुम्हारा हक है ....
तुम इसे जरुर चुन लेना,
मेरी आह के बाद ....
सुनो,
तुम जानती तो हो ना ....
~अमितेष
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
अमि तेष भाई
सुन्दर भावाभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई
समीक्षार्थ कुछ बातें अवश्य कहूँगा ...
कई जगह टंकण त्रुटि के कारण पढ़ने का लुत्फ़ कम होता रहा
//
के हर अलफ़ाज़ को ... ... (अल्फ़ाज़ की जगह लफ्ज़ होना चाहिए)
तितलिया ..??
दुनियाँ, ??
वैसे भाव इतने गहरे हैं की रचना हमें डूबने नहीं देती ....
है न विरोधाभास ,,, गहराई हमें डूबने नहीं देती ... हा हा हा
Abid ali mansoori jee, aman kumar jee, Shyam Narain Verma jee, vijayashree jee, coontee mukerji jee, Vinita Shukla jee , बृजेश नीरज jee , Sumit Naithani jee , Roshni Dhir jee, vijay nikore jee , Rajesh Kumar Jha jee व Jitendra Pastariya jee ............... उत्साह बढाने का शुक्रिया ....
..............वैसे मुझे यहाँ समीक्षा का इन्तजार था ..............
सुंदर अभिव्यक्ति.........बधाई
बहुत सुंदर / सादर
दिल को छू लेने वाली सुन्दर रचना. बधाई.
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति! बधाई!
बहुत ही सुंदर रचना! बधाई।
बहुत ही सुंदर रचना
मेरी कविताओं ...
के हर अलफ़ाज़ के बीच ...
एक खामोशी है ...
जिस पर फ़कत तुम्हारा हक है ...
बहुत अच्छे अमि तेष जी ..
भाव अच्छे लगे। बधाई।
सादर,
वि्जय निकोर
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