For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

=========ग़ज़ल=========
बहरे जदीद मुसद्दस महजूफ मक्फूफ़ मुतव्वी
वजन - 212 2121 2112

बात करना बड़ी बड़ी ही सही
झूठ हो या सही सही ही सही

इश्क के हर कदम पे वादे हों
तब तो करना है दोस्ती ही सही

गरचे दुनिया को ख़ुशी मिलती है
करते रहना है दिल्लगी ही सही

अश्क के घूँट इश्क में जो मिलें
उम्र भर रखना तिश्नगी ही सही

शर्म से मत झुकाओ यूँ नज़रें
करने दो थोड़ी मयकशी ही सही

राह में चल रहे हो जब तक तुम
करना मंजिल से आशिकी ही सही

भूल मत जाना हम गरीबों को
याद करना कभी कभी ही सही

उसमें डसने का हर हुनर है निहाँ
आँख खोली अभी अभी ही सही

जाते जाते तो बंदगी कर "दीप"
थोड़ी सी वक़्त की कमी ही सही

संदीप पटेल "दीप"

Views: 370

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 15, 2013 at 3:47pm
आदरणीय गणेश सर जी , आदरणीय प्रदीप सर जी , आदरणीय आशीष जी , आदरणीया डॉ प्राची जी सादर प्रणाम 
आप सभी ने ग़ज़ल पसंद की और अपने विचार रखे 
इस जर्रानवाजी के लिए आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 13, 2013 at 4:04pm

प्रेरणादायक

बधाई सादर संदीप जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 13, 2013 at 12:35pm

बहुत सुन्दर सीखें दी हैं आपने अपनी ग़ज़ल में, इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई प्रिय संदीप जी. 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 13, 2013 at 12:06pm

वाह संदीप भाई... सुन्दर गजल !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 13, 2013 at 10:33am

एक बार पुनः अच्छी ग़ज़ल, एक अलग ही कलेवर की रदीफ़ निभाया है भाई, दाद कुबूल करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service