===========ग़ज़ल=============
बहर-ए-हजज मुसम्मन सालिम
वजन- 1222 / 1222 / 1222 / 1222
गरीबों का दमन करके जो सीना तान बोलेंगे
झुकाए सर उन्ही को आप तुर्रम खान बोलेंगे
सिपाही काठ के पुतले बने फिरते हैं राहों में
कसम खाई वो करने जो सियासतदान बोलेंगे
अगर वो हाथ में झाडू लिए घर में खडा हो तो
खबर वो छाप कर अखबार में श्रमदान बोलेंगे
दरो-दीवार क्या जाने बुझा क्यूँ दीप ये घर का
हवाओं की हकीकत तो ये रोशनदान बोलेंगे
समझ आता नहीं यारो जो जाँ ही ले गया अपनी
उसे हम जान बोलेंगे या फिर हैवान बोलेंगे
बड़ी मसरूफ है दुनिया महज इक चोट खाने पर
नहीं सोचा था सपने में के अब बेजान बोलेंगे
अजब दस्तूर दुनिया का मुझे ये "दीप" लगता है
जिसे देखा नहीं हमने उसे भगवान बोलेंगे
संदीप पटेल "दीप"
Comment
अगर वो हाथ में झाडू लिए घर में खडा हो तो
खबर वो छाप कर अखबार में श्रमदान बोलेंगे
अच्छा कटाक्ष है भाई।
आदरणीय प्रदीप सर , आदरणीय विजय सर , आदरणीया शुभ्रा जी , आदरणीय अनंत भाई , आदरणीय गणेश सर जी, आदरणीय सतीश सर जी , सादर प्रणाम
आप सभी ने ग़ज़ल को सराहा और मेरे लेखन को मान दिया इसके लिए मैं आप सभी का आभारी हूँ
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
संदीप जी, बहुत ही प्यारी ग़ज़ल, सभी अशआर खुबसूरत हैं, बधाई स्वीकार करें |
गरीबों का दमन करके जो सीना तान बोलेंगे
झुकाए सर उन्ही को आप तुर्रम खान बोलेंगे ... हकीकत .. सुन्दर
सिपाही काठ के पुतले बने फिरते हैं राहों में
कसम खाई वो करने जो सियासतदान बोलेंगे ... वाह मित्रवर वाह
अगर वो हाथ में झाडू लिए घर में खडा हो तो
खबर वो छाप कर अखबार में श्रमदान बोलेंगे ... क्या बात है
दरो-दीवार क्या जाने बुझा क्यूँ दीप ये घर का
हवाओं की हकीकत तो ये रोशनदान बोलेंगे .... लाजवाब
समझ आता नहीं यारो जो जाँ ही ले गया अपनी
उसे हम जान बोलेंगे या फिर हैवान बोलेंगे ..... वाह सुन्दर
बड़ी मसरूफ है दुनिया महज इक चोट खाने पर
नहीं सोचा था सपने में के अब बेजान बोलेंगे ... मस्त मदमस्त
अजब दस्तूर दुनिया का मुझे ये "दीप" लगता है
जिसे देखा नहीं हमने उसे भगवान बोलेंगे ... गज़ब ग़ज़ल में सब.
बंधुवर मित्रवर ज़माने के रंग रूप का इतनी शालीनता के साथ ग़ज़ल में बयां किया है, पढ़के दिल बाग़-बाग़ हो गया मित्र मजा आ गया, महफ़िल लूट ली आपने हार्दिक बधाई दिली दाद कुबूलें. सादर
दरो-दीवार क्या जाने बुझा क्यूँ दीप ये घर का
हवाओं की हकीकत तो ये रोशनदान बोलेंगे
बहुत खूब संदीप जी ... बहुत खूब . बेहतरीन पेशकश ... दाद कुबूल फरमाएं
जिसे देखा नहीं हमने उसे भगवान बोलेंगे,
बहुत अच्छे।
बधाई।
विजय निकोर
बहुत खूब सूरत बयानी की है
बधाई, आदरणीय संदीप जी, सादर
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