माँ तुमसॆ बलिदान माँगती है :--
========================
भारत कॆ सैनिकॊं की हत्या पर, इंद्रासन हिला नहीं,
प्रलयं-कारी शंकर का क्यॊं, नयन तीसरा खुला नहीं,
शॆष अवतार लक्ष्मण जागॊ, मत करॊ प्रतीक्षा इतनी,
मर्यादाऒं मॆं बंदी भारत माँ,दॆ अग्नि-परीक्षा कितनी,
हॆ निर्णायक महा-पर्व कॆ, तुम फिर सॆ जयघॊष करॊ,
युद्ध-सारथी बन भारत कॆ, जन-जन मॆं जल्लॊष भरॊ,
भारत माँ की बासंती चूनर,तुमसॆ नया बिहान माँगती है !!
महाँकुम्भ मॆं महाँ-युद्ध कर, यॆ रक्तिम स्नान माँगती है !!१!!
सब नॆ दॆखा है दुश्मन कितना, अपघाती हिंसक है,
हाय हमारी किस्मत अपना शासन हुआ नपुंसक है,
कटा शीश धड़ सैनिक का, धिक्कार रहा है सबकॊ,
कुर्सी सॆ तुम करॊ वार्ता,शत्रु ललकार रहा है सबकॊ,
जब सरहद पर निर्दॊष,फ़ौजियॊं कॆ सर काटॆ जायॆंगॆ,
भारत कॆ यॆ अस्त्र-शस्त्र, क्या रख कर चाटॆ जायॆंगॆ,
भारत की युवा-शक्ति उठ, माँ तुझसॆ वलिदान माँगती है !!२!!
महाँ-कुम्भ मॆं महाँ-युद्ध कर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
पागल और दीवानॆ बन कर,यूँ गलियॊं मॆं मत घूमॊ,
भगतसिंह सुखदॆव सरीखॆ, फांसी कॆ फन्दॊं कॊ चूमॊ,
बड़ॆ भाग्य सॆ पाया है यॆ, जीवन सार्थक कर जाऒ,
माँग रही बलिदान भारती,उसकी खातिर मर जाऒ,
आवाहन कर युवा क्रांति का, अब आगॆ बढ़ जाऒ,
तुम्हॆं कसम है भारत माँ की,दुश्मन पर चढ़ जाऒ,
भारत की यह पावन धरती,ज़ुल्मॊं का दिवसान माँगती है !!३!!
महाँ-कुम्भ मॆं महाँ-युद्ध कर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
एक निवेदन करता हूँ तुम सॆ, भारत कॆ रचनाकारॊ,
युवा-शक्ति कॆ पौरुष पर,मत कायरता का रँग डारॊ,
बिंदिया,पायल,कंगन झुमकॆ,ना गॊरी कॆ गाल लिखॊ,
रँग दॆ बसन्ती चॊला गातॆ,भारत माँ कॆ लाल लिखॊ,
रॊम-रॊम मॆं दॆशभक्ति का,ज़ज़्बा और ज़ुनून लिखॊ,
उस हत्यारॆ कॊ ख़त मॆं, खून का बदला खून लिखॊ,
वाणी कॆ साधक ऒज पुरुष, माँ निष्पक्ष बयान माँगती है !!४!!
महाँ-कुम्भ मॆं महाँ-युद्ध कर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कवि-राज बुन्दॆली
१२/०१/२०१३
Comment
एक सामयिक रचना, बधाई आदरणीय बुन्देली जी ।
क्या इस नपुंसकता की पराधीनता से मुक्ति के लिए फिर से क्रांति चाहिए ? फिर से विद्रोह की जरुरत है ? फिर से नरसंघार चाहिए ? क्या कुछ भी शांति से हम पा नहीं सकते ? आज फिर से यही प्रश्न मेरे मन को कष्ट दे रहा है। आपकी कविता सोचने पर मजबूर करती है। लिखते रहे।।नमन
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online