जिन्दगी तुझसे क्या
सवाल करूँ , क्या शिकायत करूँ
तुझसे जैसा चाहा
वैसा ही पाया ........
फूल चाहे तो फूल ही मिले
फूलों में काँटों की शिकायत
तुझसे क्यूँ करूँ ,
मेरी तकदीर के काँटों की
शिकायत तुझसे क्यूँ करूँ ..........
सितारों भरा आसमान
चाहा तो भरपूर सितारे मिले
कुछ टूटे बिखरे सितारों की शिकायत
तुझसे क्यूँ करूँ ,
मेरी तकदीर के टूटे सितारों
की शिकायत तुझसे क्यूँ करूँ .....
जिंदगी हर कदम पर तूने
दिया साथ मेरा ,
मंजिल पर आकर राह भटक गयी
शिकायत तुझसे क्यूँ करूँ
मंजिल के लिए तरसना मेरी तकदीर
शिकायत तुझसे क्या करूँ ......
( मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
अपने आज की पूरी ज़िम्मेदारी खुद लेना, शिकायतों से परे ............ सुन्दर भाव
मंजिल पर आकर राह भटक गयी
शिकायत तुझसे क्यूँ करूँ........सुन्दर भाव , इस रचना के लिए बधाई उपासना जी
उपास्बा जी, भावों की कितनी सुंदर अभिव्यक्ति है आपकी रचना में.
''मंजिल पर आकर राह भटक गयी
शिकायत तुझसे क्यूँ करूँ ''
राजेश कुमार झा जी ....सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ..
अच्छे भाव से ओत-प्रेत सुंदर कविता के लिए हार्दिक बधाई
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