मुझको क़फस में क़ैद रहने दीजिए
अश्कों को मेरे यूँ ही बहने दीजिए
मेरे गुनाहों की तलाफी है यही
हर सितम चुपचाप सहने दीजिए
गुन्ग दीवारें फकत और कुछ नहीं
ना कीजिए आवाज, रहने दीजिए
महव-ए-गम हो जाओगे ऐ गम-गुसार
होठों को मेरे कुछ ना कहने दीजिए
किस बात के हो मुन्तज़र "विश्वास" तुम
ख़्वाबों को होकर ख़ाक ढहने दीजिए
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
मेरी हौसला आफजाई के लिए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया :-)
praveen ji bas apnee akaanchha se paripoorit kartee huyee kavita...jeevan me yehee to chahiye....
मेरे गुनाहों की तलाफी है यही
हर सितम चुपचाप सहने दीजिए
प्रवीन जी
बहुत खूब
सादर
बहुत खूब !
मेरे गुनाहों की तलाफी है यही
हर सितम चुपचाप सहने दीजिए
गज़ब के अशार विश्वास जी
मधुरम्-मधुरम्
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