For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उठते बैठते बस एक ही ख्याल हुआ

उठते बैठते बस एक ही ख्याल हुआ
क्यूँ जीना भी इस कदर मुहाल हुआ

लुटी आबरू तो चुप हैं सफ़ेद-पोश
ख़ामो ख्वाह की बातों पर बवाल हुआ

जलाता है रावण खुद अपना ही बुत
तमाशा ये देखो हर साल हुआ

जुबां शीरीं और खंज़र हाथ में है
"विश्वास" करना भी अब इक सवाल हुआ

सोचता हूँ बन जाऊं मैं भी नासेह
उतरा जो इस धंधे में मालामाल हुआ

घोटाले बने है सीढी तरक्की की
सियासत का ये फन भी कमाल हुआ

सरताज-ए-कायनात ये वतन मेरा
चंद कमज़र्फों के हाथों कंगाल हुआ


*मौलिक एवं अप्रकाशित*

Views: 792

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on October 7, 2013 at 1:29am

सुंदर कथ्य!!

बहर संलग्न के निवेदन के साथ शुभकामनायें !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 6, 2013 at 2:56pm

सुन्दर प्रस्तुति प्रवीण वर्मा जी 

सरताज-ए-कायनात ये वतन मेरा 
चंद कमज़र्फों के हाथों कंगाल हुआ.... सही बात 

हार्दिक बधाई 

 

Comment by Praveen Verma 'ViswaS' on October 5, 2013 at 11:20am

आदरणीय वीनस सर , विचारों की बाढ़ जब आती है तो उन्मुक्त होकर आती है. फिर भी मै आगे से ध्यान रखूँगा कि इन पर नियमों का बाँध लगा सकूँ . . . आभार. 

Comment by coontee mukerji on October 5, 2013 at 1:04am

जलाता है रावण खुद अपना ही बुत
तमाशा ये देखो हर साल हुआ.....वाह!.....परवीन भाई रावण मारेगा....ज़रा सम्भलके.

Comment by वीनस केसरी on October 4, 2013 at 11:13pm

सुन्दर प्रयास है भाई ... मूलभूत नियमों पर ध्यान देने की जरूरत है

Comment by MAHIMA SHREE on October 4, 2013 at 10:35pm

जलाता है रावण खुद अपना ही बुत
तमाशा ये देखो हर साल हुआ.... .... क्या बात है ... बहुत ही शानदार बधाई आपको

Comment by Sushil.Joshi on October 4, 2013 at 9:24pm

वाह.... बेहद सुंदर भावों का सम्मिश्रण है प्रवीन भाई जी.... इस नज़्म के लिए बधाई...

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 4, 2013 at 8:33pm

बहुत बहुत शुभकामनाये और बधाईयाँ 

Comment by Meena Pathak on October 4, 2013 at 7:29pm

सुन्दर गज़ल .. बधाई स्वीकारें 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 4, 2013 at 4:33pm

सरताज-ए-कायनात ये वतन मेरा 
चंद कमज़र्फों के हाथों कंगाल हुआ...बिलकुल सहमत हूँ मैं आपसे ....सादर बधाई के साथ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
17 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
20 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service