For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छा रहा है गगन में कुछ कुछ उजाला
बढ़ रही है पूर्व दिशि की लालिमा

जगमगाते तारे भी फीके पड़े हैं
घट रही है यामिनी की कालिमा

चन्द्रमा निस्तेज होकर जा छुपा है
मंद पड़ती श्वेत किरणों को समेटे

चाहता है पश्चिमी दिव्यांगना के
पास जाकर गोद में कुछ काल लेटे

हाथ थामे दिग्वधू का आ रहे हैं
तिमिर के बैरी प्रभु श्री अंशुमाली

मंद वायु भी लगी है मुस्कुराने
छिप गयी है कही जाकर रात काली

हिमगिरी के हर शिखर पर छा गयी है
चमचमाते सूर्य की पीताभ छाया

कुलिश-पाणि इन्द्र की पूरब दिशा में
शान से दिननाथ ने आसन जमाया

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 6372

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 7:09am

रचना की पंक्तियाँ सूर्योदय का अक्स आँखों के समक्ष लाने में सक्षम हैं.... इस हेतु बधाई आ0 प्रवीन जी...

Comment by बृजेश नीरज on October 22, 2013 at 7:53am

हर विधा की अपनी खासियत होती है. एक विधा की असफलता को दूसरी विधा के नाम नहीं किया जा सकता. बेहतर हो कि आप यहाँ के विभिन्न समूहों के लेख पढ़ें और फिर प्रयास करें. अन्य सदस्यों की रचनायें देखें और टिप्पणी करें. सतत प्रयास से कलम सध जायेगी.

बहरहाल, इस प्रयास के लिए आपको हार्दिक बधाई! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 22, 2013 at 12:29am

//क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग के बाद भी कविता में परिपक्वता नहीं आ पाई।//

ये आपको किसने समझा दिया है कि मात्र क्लिष्ट शब्दों से कोई कविता परिपक्व हो जाती है ???

आपकी प्रस्तुत रचना का विन्यास ही असंयत है, भाई. जो अनवरत और दीर्घकाल तक प्रयासरत रहने से सुधरता जायेगा..

शुभेच्छाएँ

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 21, 2013 at 11:30pm

भोर की और बढ़ते आपके इन कदमो के लिए शुभकामनाये |

Comment by annapurna bajpai on October 21, 2013 at 6:50pm

बढ़िया , सुंदर भाव , बहुत बधाई आपको आ0 । 

Comment by Praveen Verma 'ViswaS' on October 21, 2013 at 3:49pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, यह कविता मैंने अपनी किशोरावस्था में अपनी माध्यमिक शिक्षा के दौरान लिखी थी। इसीलिए क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग के बाद भी कविता में परिपक्वता नहीं आ पाई। आगे की रचनाओं में विशेष ध्यान रखूँगा। आपका मार्गदर्शन प्रार्थनीय है।

Comment by Praveen Verma 'ViswaS' on October 21, 2013 at 3:42pm

सभी अग्रजों के आशीर्वाद हेतु  साभार धन्यवाद 

Comment by Neeraj Neer on October 20, 2013 at 11:21am

सुन्दर भाव एवं सुन्दर शब्दों का प्रयोग .. बाकि इस मंच पर सीखने को बहुत कुछ है .. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 20, 2013 at 10:28am

कविता का अच्छा प्रयास है भाई प्रवीन जी, बधाई स्वीकार करें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2013 at 11:22pm

कविता में प्रभावित करते शब्दों का प्रयोग भला लग रहा है.  लेकिन. भाईजी, शिल्पकी दृष्टि से पूरी कविता का विन्यास ही असहज है.  ऐसा क्यों हुआ है यह तो आप ही बता पायेंगे. चूँकि यह कविता प्रथम दृष्ट्या प्रकृति-सुषमा से तृप्त क्षण साझा करती है, अतः यह असहजता विस्मित करती है.

बहरहाल, आपके सुन्दर और गंभीर प्रयास पर हार्दिक बधाई, भाई.  संदेह नहीं, आपका रचनाकर्म सम्भावनाओं से भरा हुआ है.

शुभेच्छाएँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
12 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
12 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service