एक बालक था | बालक बेरोजगार था | बहुत प्रयास किया, पर सही रोजगार नहीं मिला | अंततः थक हारकर वो जुगाड़ू बाबा की शरण में गया | उसने जुगाड़ू बाबा को अपना दुखड़ा सुनाया | उसका दुखड़ा सुनकर जुगाड़ू बाबा ने उसे दो मिर्च, एक काला धांगा और एक नींबू दिया और बोले इनको गूथ और बेच | बालक बोला- बाबा ! ये क्या रोजगार है ? बालक की बात सुनकर ऐसे मुस्कुराये जुगाड़ू बाबा, जैसे बालक ने कोइ बचकानी बतिया दी हो | वो बोले - बालक ! तू अभी अनुभवहीन है, तुझे इस संसार का कुछ नहीं पता है, इसीलिए ऐसी बेतुकी बात पूछ रहा है | इस महान हिपोक्रेट भारतवर्ष में सिर्फ तीन चीजें चलती हैं- नेतागिरी, दादागिरी और बाबागिरी | नेतागिरी और दादागिरी में तो फिर भी रिस्क है, लफड़ा होने, जेल जाने का डर है, पर बाबागिरी एकलौता ऐसा सोर्स ऑफ इनकम है, जहाँ बाईज्जत मोटी कमाई होती है | भक्त लोग चरण स्पर्श के साथ चढ़ावा भी चढ़ाते हैं, और साथ ही, बाबा लोगों को कोइ कुछ कह भी नहीं सकता | अगर किसीने कुछ कहने की हिम्मत की, तो भक्त लोग उसकी ऐसी वाट लगाते हैं कि आगे से वो कहना ही भूल जाता है | कुल मिलकर पूरा सेफ रास्ता है मोटी कमाई का | इसलिए हे बालक ! तू सभी सोच को त्याग और लग जा नींबू कि बाबागिरी में |
जुगाडू बाबा के इस उपदेश से बालक को कुछ अक्ल आई, वो बोला- बाबा, आपने मेरी आँखें खोल दी, मै समझ गया कि बाबागिरी सबसे बेहतर व्यापर है, सबसे अच्छी नौकरी है, और सबसे अच्छा पद भी बाबागिरी ही है | कुल मिलकर इस देश में मोटी कमाई का सबसे बेहतर साधन बाबागिरी ही है, पर बाबा एक संदेह है कि क्या नींबू की बाबागिरी चलेगी | बाबा बोले- कितनी बार कहूँ कि यहाँ सिर्फ बाबागिरी चलती है | नींबू हो या टमाटर, बाबागिरी जुड़ जाने पर सब चलेगा |
बालक जुगाड़ू बाबा का चरण-वंदन करके चला गया, और फिर, कुछ दिनों बाद, एकदिन एक और बाबा पैदा हुए | ये बाबा, लोगों को समस्या-समाधान हेतु नींबू और मिर्च, काले धांगे में गूथकर देते | किसी को घर के उत्तर में टांगना होता, तो किसी को पूरब में, और पते की बात तो ये है कि लोगों को इनसे लाभ भी पहुंचा, कतारें बढ़ाने लगीं और अब तो ये वास्तुशास्त्र के विशेषज्ञ कहे जाने लगे |
वर्षों बीत गए.....! बाबा अभी प्रत्यक्षतः एक छोटे से घर में रहते हैं, उसी छोटे से घर में उनके कई कोठियों और बैंक खातों के कागजात, एक छोटे से संदूक में अप्रत्यक्षतः रखे हैं और हाँ अब उनका एक नया नाम भी पड़ गया है- निबुहवा बाबा |
- पियूष द्विवेदी 'भारत'
Comment
धन्यवाद आदरणीय प्राची दी...!
धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी, बाकी प्रयास जारी है, बस यूँ ही मार्गदर्शन देते रहें ! सादर !
बहुत सुन्दर व्यंग ...बेरोजगार बालक से करोडपति निबुहवा बाबा तक का सफ़र रोचक लगा...
हार्दिक बधाई इस व्यंग लेख पर.
यह उचित है कि इस तरह के किसी अतिरेक पर व्यंग्य की ताव चली है. तथ्य को कथ्य का और सटीक संबल मिले. अभिव्यक्ति प्रवाह में है.
शुभेच्छाएँ.
धन्यवाद आदरणीय राजेश कुमारी जी... !
और पढेलिखे अनपढ़ भी इनके चक्करों में पड़ जाते हैं ये सबसे दुखद बात है बधाई इस सामयिक मुद्दे पर लिखने हेतु
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online