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बिन बुलाये आ जाती हैं
कहने पर कहाँ जाती हैं
और हम भी दिन- रात
सोते- जागते
उठते-बैठते 
उन्ही को याद करते हैं
उन्ही के बारे में सोचते हैं
उनके बिन जैसे जीना मुहाल है  
हमारे पास वक़्त नहीं है
और वो ठहरे फ़ुरसतिया 
फिर भी कौन ऐसा है 
जो नहीं करता उनकी खातिर
आखिर हैं तो अपनी ही न
छोड़ भी तो नहीं सकते
जीने के लिए वही तो वजह है
.
.
.
.
.
कितनी अजीज होती हैं न !
ये "परेशानियाँ"

संदीप पटेल "दीप"

Views: 339

Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 31, 2013 at 8:49pm

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम

आपकी सराहना पा कर मन प्रसन्न हो उठा है

स्नेह और आशीष यूँ ही बनाए रखिये आपका बहुत बहुत आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 30, 2013 at 9:55pm

बढिया .. 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 4:53pm

तहे दिल से शुक्रिया आपका भाई अरुण जी रचना को पढने और सरहाने के लिए

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 30, 2013 at 11:08am

संदीप भाई वाह बहुत ही खूबसूरती से बयां किया है आपने.

Comment by Shyam Narain Verma on January 29, 2013 at 2:07pm

.

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